अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि!!

जो अतुल बलके धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कंतियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन (को ध्वंश करने ) के लिये अग्निरूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणोंके निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त हैं उन पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ ।

hanuman

1. सप्तमुखी हनुमत कवच । Saptmukhi Hanumat Kavch - √यह पाठ अथवर्ण रहस्योक्त है जिसका तीनो समय पाठ करने से परिवार मे सुख व स्मृद्धि होती है। असाध्य रोग नष्ट होते है। मान सम्मान व कीर्ति लाभ होता है है व शत्रुओ का हनन होता है। यह पाठ अत्यंत गुप्त है। अत: इसका प्रयोग भी गोपनीयता के साथ करनी चाहिये युं भी परम्परा है की गुप्त साधन गोपनीय रखे जाने चाहिये। । मान्यता है की भोजन, मैथुन व साधन एकांत मे करना चाहिये।

 

2. संकट मोचन स्तोत्रम । Sankat Mochan stotram - √संकट मोचन स्तोत्रम । Sankat Mochan stotram

 

3. संकट मोचन पाठ् । Sankat Mochan Path - √यह पाठ हनुमान चालिसा की भांति ही सरल भाषा मे है। है। और इसका अनुष्ठान संकटो का शमन करता है। इसे प्रति संध्या मे २१ बार पढ़्ते है और २१ दिन तक करते है। ४० रोज करना विशेष लाभकारी रहता है

 

4. लांगुलास्त्र शत्रुंजय हनुमतस्तोत्रम| Langulastra Shatrunjay Hanumatstotram - √यह स्तोत्र शत्रु नाशक है। जब अनेक शत्रु जीवन को दुख पहुचाने लग जाय या कोई शक्तिशाली व्यक्ति शत्रु बन जाये तब विनीति भाव से 'ममारातीन निपाताय' का पाटः करना चाहिये । इसके साथ ही मालामंत्र अर्थात मंत्रात्मक एक पाठ है जिसे साव्धानी से करना होता है। है।यह पूरा का पूरा पाठ अति विलक्षण है ईसके प्रभाव से शत्रु को कष्ट होने लग जाता है और प्रत्यक्ष से छुपे शत्रु पीणित होते है। है। परंतु स्मरण यह रखना होता है की पाटः के मध्य में अरे मल्ल चटख या तोड़रमल्ल चटख का उचारण करके कपि मुद्रा का प्रदर्शन करना होता है। इसके प्रभाव अतयंत गम्भीर होते है।

 

5. एकादशमुखी हनुमतकवच| Ekadashmukhi Hanumat Kavach in Hindi - √इस पाठ को करने से बाद बिबाद, भयानक कष्टकष्ट, ग्रह भय, जल, सर्प, दुर्भिक्ष, भयंकर राज्य शस्त्र भय से भय नही रहता है और तीनो संधायो मे इसका पाठ करने से निसंदेह अभीश्ट लाभ होता है। है। सिद्धिया प्राप्त करने वाले को यह पाठ अवश्य करना चाहिये।

 

6. राम रक्षा स्त्रोत - √ पूजा विधि एवं हिंदी अर्थ सहित ⇒.पूरा पढे

 

7. जानिये क्यों होते हैं माला में १०८ दाने - √ जानिये क्यों होते हैं माला में १०८ दाने... ⇒.पूरा पढे

 

8. हनुमान वडवानल स्तोत्र - √ बड़ी-से-बड़ी विपत्ति टालने के लिये... ⇒.पूरा पढे

 

9. पंच मुखि हनुमत्कवचं | - √ शत्रुओं के नाश के लिये ... ⇒पूरा पढे

 

10. हनुमान जी की पंचोपचार पूजा विधि √ संक्षिप्त विधि ... ⇒पूरा पढे

 

11. अथ श्री एक मुखि हनुमत्कवचं - √ अर्थ सहित ... ⇒ पूरा पढे

 

12. हनुमद् बीसा - √ सभी शत्रु को तत्काल नष्ट करने के लिये ... ⇒पूरा पढे

 

13. हनुमान जी के बारह नाम - √ यात्रा पर जाने या न्याय सम्बंधि कार्यों के पहले करें ... ⇒पूरा पढे

हनुमान जी की उत्पति के चार प्रमुख उद्देश्य

1) सत्यपथ नगरी के राजा केशरी और पटरानी अंजना के कोई संतान नहीं थी। इसलिए अंजना ने अपने पति की आज्ञा लेकर गंधमान पर्वत पर जा करके भगवान शिव की कठोरतपस्या की। बहुत दिनों की घोर तपस्या के बाद लोक-कल्याणकारी भगवान शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने अंजना से वरदान माँगने को कहा। तब अंजना ने शिव जी के जैसा ही बली तथा तेजस्वी पुत्र का वरदान माँगा। तब महाराज शिव जी ने अंजना को वरदान दिया की उनके गर्भ से शिव जी हीं अवतार के रूप में जन्म लेंगेऐसा वरदन देकर शिव जी महाराज अंतर्ध्यान हो गये।
2) जलंधर नामक राक्षस का वध करने के लिये भगवान शिव को पवनदेव की शक्ति की आवश्यकता पड़ी। क्युंकि जलंधर बहुत ही तेज गति से आक्रमण करता था। भगवान शंकर के अनुरोध पर पवनदेव ने अपना पूरा बल, वेग भगवान शिव के साथ संलिष्ट कर दिया। उस वेग के सहयोग से ही भगवान शिव ने जलंधर का संहार किया। जलंधर के संहार के बाद शिव जी ने पवनदेव को उनकी शक्ति लौटा दी और उनसे वरदान माँगने को कहा। पवन देव ने भगवान शिव के अविचल भक्ति का वरदान माँगा। तब भगवान शिव ने पवनदेव से कहा कि इसके बदले में मैं तुम्हारा पुत्र होकर विश्व में कीर्ति फैलाऊँगा।

3) लंकाधिपति रावण के अत्याचार से समस्त संसार में हाहाकार मच गया। देवी-देवता भी उसकी शक्ति का लोहा मानते थे। पर्वताकार कुम्भकरण जब अपनी छ: महीने की निद्रा पूर्ण करके उठता था तो पृथ्वी के सम्स्त जीवों में हलचल मच जाती थी। रावण और कुम्भकरण भगवान शंकर के भक्त थे। रावण ने शिवजी को अपना शीश काटकर चढ़ाया था और ब्रह्मा जी का कठिन तप कर के यह वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु नर और वानर के अतिरिक्त किसी से भी न हो।
हम काहु के मरहि ना मारे।
वानर मनुज जाति दुउ टारे॥
इस बात को जानकर सभी देवताओं ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। तब भगवान शिव ने उन्हें बताया कि वे वानर का अभिमान-शून्य रूप धारण करेंगे और श्री राम का अनुचर बनकर पृथ्वी पर अवतरित होंगे ।

4) कौतुकी नगर में नारद द्वारा श्राप पा चुकने पर भगवान विष्णु सदा ही चिंतित रहते थे। रावण का अत्याचार बहुत बढ़ा चुका था। अब यह आवश्यक था कि भगवान विष्णु अपने प्रमुख सहायकों के साथ जन्म लेते और उस घोर पराक्रमी और अत्याचारी का विनाश करते। तब भगवान विष्णु ने शिव जी की अराधना करना प्रारम्भ कर दिय। विष्णु जी की अराधना से प्रसन्न हो कर शिव जी प्रकट हुए । तब विष्णु जी बोले- प्रभो! आप हमारे अराध्यदेव हैं, आप ही के द्वारा दिया गया अमोघ सुदर्शन चक्र ही हमारा रक्षक है। अब आपको भी हमारे साथ पृथ्वी पर अवतरित होना है जिससे रावण का नाश हो सके। भगवान शिव ने बताया कि प्रभो ! मैं तो सदा ही आपकी सेवा के लिये तैयार हूँ। मैने भी देवी अंजना को वरदान दिया है कि उन्हीं के गर्भ से पुत्र रूप मे मैं उत्पन्न होऊँगा। वैसे तो रावण मेरा भक्त ही है किंतु अहंकार के रंग में रंगकर वह भले-बुरे का ज्ञान भूल चुका है।

अलग अलग देवताओं से मिले हुए वरदान

हनुमान जी अपने बाल काल में बहुत शरारती थे । एक बार सुर्य को देखकर उन्हें लगा की कोई फल है अत: उस फल को खाने की इच्छा से हनुमान जी सुर्य की ओर बढ़े और अपने मुख में भर लिया। तभी इंद्र ने घबराकर अपने वज्र से उसपर वार किया और वे मूर्छित हो गये। हनुमान को मूर्छित देखकर पवनदेव क्रोधित हो गये और पूरे संसार को वायुविहिन कर के एक गुफा में बैठ गये। चारों ओर हाहाकारमच गया। तब स्वयं ब्रह्मा जी ने आकर हनुमान को जीवित किया, और वायुदेव गुफा से बाहर निकले। उसी समय सभी देवताओं ने हनुमान जी को भिन्न-भिन्न वरदान दिए।

सूर्यदेव का वरदान

सूर्यदेव ने हनुमान को सर्वशक्तिमान बनने का वरदान दिया और अपने तेज का सौवा भाग प्रदान किया । सूर्य देव ने उन्हें पवनपुत्र को नौ विद्याओं का ज्ञान देकर एक अच्छा वक्ता और अद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी भी बनाया।

यमराज का वरदान

यमराज ने हनुमान को अपने दंड से मुक्त होने का वरदान दिया।

कुबेर का वरदान

कुबेर ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों के प्रभाव से हनुमान को मुक्त कर दिया था तथा अपनेगदा से भी उन्हें निर्भय कर दिया था।

भोलेनाथ का वरदान

भगवान शिव ने उन्हें किसी भी अस्त्र से मृत्यु नहीं होने का वरदान दिया था।

विश्वकर्मा का वरदान

विश्वकर्मा ने हनुमान को ऐसी शक्ति प्रदान की जिसकी वजह से विश्वकर्मा द्वारा निर्मित किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु ना हो पाये, साथ ही उनको चिरंजीवी होने का वरदान भी प्रदान किया।

देवराज इन्द्र का वरदान

इन्द्र देव के द्वारा ही हनुमान की हनु ( ठुड्डी ) खंडित हुई थी, इसलिए इन्द्र ने ही उन्हें “ हनुमान ” नाम दिया था तथा उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वज्र भी महावीर को चोट नहीं पहुंचा पाएगा।

वरुण देव का वरदान

वरुण देव ने हनुमान को दस लाख वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया।

ब्रह्मा का वरदान

ब्रह्मा जी ने उन्हें हर प्रकार के ब्रह्मदंडों से मुक्त होने का और अपनी इच्छानुसार गति और वेश धारण करने का, तथा धर्मात्मा एवं परमज्ञानी होने का वरदान दिया।

हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने का कारण-

एक बार की बात है कि सीता जी अपनी मांग को सिंदूर से सजा रही थी । ठीक उसी समय हनुमानजी वहाँ पहुँचे । माता जानकी को सिंदूर लगाते देखकर हनुमान जी ने पूछा- “हे माँ , आप सिंदूर अपनी मांग में क्यूँ भरती हैं ?

” सीताजी ने उत्तर दिया कि हे पुत्र! इससे तुम्हारे स्वामी की आयु बढ़ती है । सिंदूर सौभाग्यवती स्त्रियों का एक आभूषण है। सिंदूर से स्वामी की आयु बढ़ेगी ऐसा सोचकर हनुमानजी ने माँ से सिंदूर मांगा और उसे पूरे शरीर पर पोतकर प्रसन्नता के साथ प्रभु श्री राम के पास जा पहुँचे । उन्हें सिंदूर से रंगा देखकर भगवान श्री राम ने हँसते हुए पूछा – हे पवन पुत्र ! यह क्या किया है ? हनुमानजी ने गद्गद् स्वर में उत्तर दिया –

“हे नाथ ! माता सीता ने कहा था कि ऐसा करने से आपकी आयु बढ़ेगी। ” ऐसा सुनकर श्री राम ने हनुमानजी को हृदय से लगा लिया ।

हनुमान वडवानल स्तोत्र (HANUMAT BADWANAL STROTRA)
“हनुमान वडवानल स्तोत्र” का पाठ बड़ी विपत्ति आ जाने पर किया जाता है । इस स्तोत्र के पाठ करने से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति भी टल जाती है। मनुष्य के सभी संकट स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं और हनुमान जी के कृपा से वह सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है। Read More

पंच मुखि हनुमत्कवचं | Panch Mukhi Hanumat Kavach in Hindi
इस कवच का एक पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है । दो पाठ करने से कुटुम्ब की वृद्धि होती है । तीन पाठ करने से धन लाभ होता है । चार पाठ करने से ... Read More

हनुमान जी की पंचोपचार पूजा विधि / संछिप्त विधि
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अथ श्री एक मुखि हनुमत्कवचं अर्थ सहित| Ek Mukhi Hanumat Kavach in Hindi
अथ श्री एक मुखि हनुमत्कवचं | Ek Mukhi Hanumat Kavach in Hindi WITH MEANING Read More

हनुमद् बीसा (HANUMAT BISA)
यह पाठ हनुमान जी का प्रसाद है। इसका पाठ करने से सभी शत्रु तत्काल नष्ट हो जाते हैं। हनुमद् बीसा का इक्कीस दिन तक १०८ बार पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। उस मनुष्य का कोई भी शत्रु नहीं रह जाता। Read More



हनुमान साठिका (HANUMAN SATHIKA)
हनुमान साठिका का प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को सारी जिंदगी किसी भी संकट से सामना नहीं करना पड़ता । उसकी सभी कठिनाईयाँ एवं बाधाएँ श्री हनुमान जी आने के पहले हीं दूर कर देते हैं। हर प्रकार के रोग दूर हो जाती हैं तथा कोई भी शत्रु उस मनुष्य के सामने नहीं टिक पाता । Read More

हनुमान बाहुक (HANUMAN BAHUK)
एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी बहुत बीमार हो गये । भुजाओं में वात-व्याधि की गहरी पीड़ा और फोड़े-फुंसियों के कारण सारा उनका शरीर वेदना का स्थान-सा बन गया था। उन्होंने औषधि, यन्त्र, मन्त्र, त्रोटक आदि अनेक उपाय किये, किन्तु यह रोग घटने के बदले दिनों दिन बढ़ता ही जाता था। Read More
बजरंग बाण पाठ महात्मय
श्री बजरंग बाण- बजरंग बाण तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में रचित हनुमान जी का पाठ है । बजरंग बाण यानि की भगवान महावीर हनुमान रूपी बाण जिसके प्रयोग से हमारी सभी तरह की विपदाओं, दु:ख, रोग, शत्रु का नाश हो जाता है।Read More
श्री हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्रम (HANUMAN SAHASRANAMAM STOTRAM)
जो भी मनुष्य सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है उसके समस्त दु:ख नष्ट हो जाते हैं तथा उसकी ऋद्धि –सिद्धि चिरकाल तक स्थिर रहती है। प्रतिदिन डेढ़ मास तक इस हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्र का तीनों समय पाठ करने से सभी उच्च पदवी के लोग साधक के अधीन हो जाते हैं । Read More