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हनुमान जी की उत्पति के चार प्रमुख उद्देश्य
1) सत्यपथ नगरी के राजा केशरी और पटरानी अंजना के कोई संतान नहीं थी। इसलिए अंजना ने अपने पति की आज्ञा लेकर गंधमान पर्वत पर जा करके भगवान शिव की कठोरतपस्या की। बहुत दिनों की घोर तपस्या के बाद लोक-कल्याणकारी भगवान शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने अंजना से वरदान माँगने को कहा। तब अंजना ने शिव जी के जैसा ही बली तथा तेजस्वी पुत्र का वरदान माँगा। तब महाराज शिव जी ने अंजना को वरदान दिया की उनके गर्भ से शिव जी हीं अवतार के रूप में जन्म लेंगेऐसा वरदन देकर शिव जी महाराज अंतर्ध्यान हो गये।
2) जलंधर नामक राक्षस का वध करने के लिये भगवान शिव को पवनदेव की शक्ति की आवश्यकता पड़ी। क्युंकि जलंधर बहुत ही तेज गति से आक्रमण करता था। भगवान शंकर के अनुरोध पर पवनदेव ने अपना पूरा बल, वेग भगवान शिव के साथ संलिष्ट कर दिया। उस वेग के सहयोग से ही भगवान शिव ने जलंधर का संहार किया। जलंधर के संहार के बाद शिव जी ने पवनदेव को उनकी शक्ति लौटा दी और उनसे वरदान माँगने को कहा। पवन देव ने भगवान शिव के अविचल भक्ति का वरदान माँगा। तब भगवान शिव ने पवनदेव से कहा कि इसके बदले में मैं तुम्हारा पुत्र होकर विश्व में कीर्ति फैलाऊँगा।
3) लंकाधिपति रावण के अत्याचार से समस्त संसार में हाहाकार मच गया। देवी-देवता भी उसकी शक्ति का लोहा मानते थे। पर्वताकार कुम्भकरण जब अपनी छ: महीने की निद्रा पूर्ण करके उठता था तो पृथ्वी के सम्स्त जीवों में हलचल मच जाती थी। रावण और कुम्भकरण भगवान शंकर के भक्त थे। रावण ने शिवजी को अपना शीश काटकर चढ़ाया था और ब्रह्मा जी का कठिन तप कर के यह वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु नर और वानर के अतिरिक्त किसी से भी न हो।
हम काहु के मरहि ना मारे।
वानर मनुज जाति दुउ टारे॥
इस बात को जानकर सभी देवताओं ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। तब भगवान शिव ने उन्हें बताया कि वे वानर का अभिमान-शून्य रूप धारण करेंगे और श्री राम का अनुचर बनकर पृथ्वी पर अवतरित होंगे ।
4) कौतुकी नगर में नारद द्वारा श्राप पा चुकने पर भगवान विष्णु सदा ही चिंतित रहते थे। रावण का अत्याचार बहुत बढ़ा चुका था। अब यह आवश्यक था कि भगवान विष्णु अपने प्रमुख सहायकों के साथ जन्म लेते और उस घोर पराक्रमी और अत्याचारी का विनाश करते। तब भगवान विष्णु ने शिव जी की अराधना करना प्रारम्भ कर दिय। विष्णु जी की अराधना से प्रसन्न हो कर शिव जी प्रकट हुए । तब विष्णु जी बोले- प्रभो! आप हमारे अराध्यदेव हैं, आप ही के द्वारा दिया गया अमोघ सुदर्शन चक्र ही हमारा रक्षक है। अब आपको भी हमारे साथ पृथ्वी पर अवतरित होना है जिससे रावण का नाश हो सके। भगवान शिव ने बताया कि प्रभो ! मैं तो सदा ही आपकी सेवा के लिये तैयार हूँ। मैने भी देवी अंजना को वरदान दिया है कि उन्हीं के गर्भ से पुत्र रूप मे मैं उत्पन्न होऊँगा। वैसे तो रावण मेरा भक्त ही है किंतु अहंकार के रंग में रंगकर वह भले-बुरे का ज्ञान भूल चुका है।
अलग अलग देवताओं से मिले हुए वरदान
हनुमान जी अपने बाल काल में बहुत शरारती थे । एक बार सुर्य को देखकर उन्हें लगा की कोई फल है अत: उस फल को खाने की इच्छा से हनुमान जी सुर्य की ओर बढ़े और अपने मुख में भर लिया। तभी इंद्र ने घबराकर अपने वज्र से उसपर वार किया और वे मूर्छित हो गये। हनुमान को मूर्छित देखकर पवनदेव क्रोधित हो गये और पूरे संसार को वायुविहिन कर के एक गुफा में बैठ गये। चारों ओर हाहाकारमच गया। तब स्वयं ब्रह्मा जी ने आकर हनुमान को जीवित किया, और वायुदेव गुफा से बाहर निकले। उसी समय सभी देवताओं ने हनुमान जी को भिन्न-भिन्न वरदान दिए।
सूर्यदेव का वरदान
सूर्यदेव ने हनुमान को सर्वशक्तिमान बनने का वरदान दिया और अपने तेज का सौवा भाग प्रदान किया । सूर्य देव ने उन्हें पवनपुत्र को नौ विद्याओं का ज्ञान देकर एक अच्छा वक्ता और अद्भुत व्यक्तित्व का स्वामी भी बनाया।
यमराज का वरदान
यमराज ने हनुमान को अपने दंड से मुक्त होने का वरदान दिया।
कुबेर का वरदान
कुबेर ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों के प्रभाव से हनुमान को मुक्त कर दिया था तथा अपनेगदा से भी उन्हें निर्भय कर दिया था।
भोलेनाथ का वरदान
भगवान शिव ने उन्हें किसी भी अस्त्र से मृत्यु नहीं होने का वरदान दिया था।
विश्वकर्मा का वरदान
विश्वकर्मा ने हनुमान को ऐसी शक्ति प्रदान की जिसकी वजह से विश्वकर्मा द्वारा निर्मित किसी भी अस्त्र से उनकी मृत्यु ना हो पाये, साथ ही उनको चिरंजीवी होने का वरदान भी प्रदान किया।
देवराज इन्द्र का वरदान
इन्द्र देव के द्वारा ही हनुमान की हनु ( ठुड्डी ) खंडित हुई थी, इसलिए इन्द्र ने ही उन्हें “ हनुमान ” नाम दिया था तथा उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वज्र भी महावीर को चोट नहीं पहुंचा पाएगा।
वरुण देव का वरदान
वरुण देव ने हनुमान को दस लाख वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया।
ब्रह्मा का वरदान
ब्रह्मा जी ने उन्हें हर प्रकार के ब्रह्मदंडों से मुक्त होने का और अपनी इच्छानुसार गति और वेश धारण करने का, तथा धर्मात्मा एवं परमज्ञानी होने का वरदान दिया।
हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने का कारण-
एक बार की बात है कि सीता जी अपनी मांग को सिंदूर से सजा रही थी । ठीक उसी समय हनुमानजी वहाँ पहुँचे । माता जानकी को सिंदूर लगाते देखकर हनुमान जी ने पूछा- “हे माँ , आप सिंदूर अपनी मांग में क्यूँ भरती हैं ?
” सीताजी ने उत्तर दिया कि हे पुत्र! इससे तुम्हारे स्वामी की आयु बढ़ती है । सिंदूर सौभाग्यवती स्त्रियों का एक आभूषण है। सिंदूर से स्वामी की आयु बढ़ेगी ऐसा सोचकर हनुमानजी ने माँ से सिंदूर मांगा और उसे पूरे शरीर पर पोतकर प्रसन्नता के साथ प्रभु श्री राम के पास
जा पहुँचे । उन्हें सिंदूर से रंगा देखकर भगवान श्री राम ने हँसते हुए पूछा – हे पवन पुत्र ! यह क्या किया है ? हनुमानजी ने गद्गद् स्वर में उत्तर दिया –
“हे नाथ ! माता सीता ने कहा था कि ऐसा करने से आपकी आयु बढ़ेगी। ” ऐसा सुनकर श्री राम ने हनुमानजी को हृदय से लगा लिया ।