401.तम: - तमोरूप में संहारकर्ता ।
402.तमोहर्ता: - तमोगुणका नाश करनेवाले ।
403.निरालम्ब: - आश्रयरहित ।
404.निराकार: - आकाररहित ।
405.गुणाकार: - गुणोंकी खानि
406.गुणाश्रय: - तीनों गुणोंके आश्रय ।
407.गुणमय: - सद्गुणोंसे सम्पन्न ।
408.बृहत्कर्मा: - महान् कार्य करनेवाले ।
409.बृहद्यशा: - विस्तीर्ण कीर्तिवाले ।
410.बृहद्धनु: - बड़ी ठुड्डीवाले ।
411.बृहत्पाद: - लम्बी टाँगोंवाले ।
412.बृहन्मूर्धा: - बड़े मस्तकवाले ।
413.बृहत्स्वन: - बड़ा शब्द करनेवाले ।
414.बृहत्कर्ण: - बड़े कानवाले ।
415.बृहन्नास: - लम्बी नासिकावाले ।
416.बृहद्बाहु: - लम्बी भुजावाले ।
417.बृहत्तनु: -विशाल देहधारी ।
418.बृहज्जानु: - बड़े घुटनोंवाले ।
419.बृहत्कार्य: - महान् कार्य करनेवाले ।
420.बृहत्पुच्छ: - लम्बी पूँछवाले ।
421.बृहत्कर: - लम्बे हाथोंवाले ।
422.बृहद्गति: - तीव्र गतिवाले ।
423.बृहत्सेव्य: - महापुरुषों के द्वारा सेव्य ।
424.बृहल्लोक फलप्रद: - सम्पूर्ण लोकरूप फल देनेवाले ।
425.बृहच्छक्ति: - महान् शक्तिशाली ।
426.बृहद्वाञ्छाफलद: - बड़ी-बड़ी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले ।
427.बृहदीश्वर: - महान् सामर्थ्यवान ।
428.बृहल्लोकनुत: - असंख्य लोगोंके द्वारा नमस्कृत ।
429.द्रष्टा: - शुभाशुभ कर्मों को देखनेवाले ।
430.विद्यादाता: - विद्या प्रदान करनेवाले ।
431.जगद्गुरु: - जगत् को सन्मार्ग में लगानेवाले गुरु ।
432.देवाचार्य: - देवताओं के आचार्य ।
433.सत्यवादी: - सत्य बोलनेवाले ।
434.ब्रह्मवादी: - ब्रह्म (परमात्म ) – विषयक विवेचन करनेवाले ।
435.कलाधर: - कलाओं के ज्ञाता ।
436.सप्तपातालगामी: - सातों पातालोंमें विचरण करनेवाले ।
437.मलयाचल संश्रय: - मलयगिरिपर निवास करनेवाले ।

438.उत्तराशास्थित: - उत्तर दिशा में स्थित ।
439.श्रीद: - शोभा ( ऐश्वर्य ) प्रदान करनेवाले ।
440.दिव्यौषधिवश: - दिव्य औषधियों को वशीभूत करनेवाले ।
441.खग: - नभोमण्डल में विचरण करनेवाले ।
442.शाखामृग: - शाखाओं पर कूदनेवाले ।
443.कपीन्द्र: - वानरों के अधिपति ।
444.पुराण श्रुतिचञ्चुर: - श्रुति और पुराण की विशेष जानकारी रखनेवाले ।
445.चतुर ब्राह्मण: - निपुण ब्राह्मणस्वरूप ।
446.योगी: - योगसिद्ध ।
447.योगगम्य: - योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
448.परावर: - विश्व के आदि और अंतस्वरूप ।
449.अनादिनिधन: - आदि-अंत से रहित ।
450.व्यास: - वेदों का विस्तार करनेवाले ।
451.वैकुण्ठ: - माया के प्रभाव से रहित 452.पृथिवीपति: - भूलोक के रक्षक ।
453.अपराजित: - शत्रुओं के द्वारा अजेय ।
454.जिताराति: - शत्रुओं को जीतनेवाले ।
455.सदानन्द: - सदा आनंदित रहनेवाले ।
456.दयायुत: - दयालु ।
457.गोपाल: - पृथ्वीका पालन करनेवाले ।
458.गोपति: - इन्द्रियों के स्वामी ।
459.गोप्ता: - भक्तों के रक्षक ।
460.कलिकाल पराशर: - कलिकाल के पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक ।


461.मनोवेगी: - मन के समान वेगवाले ।
462.सदायोगी: - सदा योगयुक्त रहनेवाले ।
463.संसार भय नाशन: - भवभय का नाश करनेवाले ।
464.तत्त्वदाता: - तत्वज्ञान के दाता ।
465.तत्त्वज्ञ: - तत्वज्ञानी ।
466.तत्त्वम्: - ब्रह्मस्वरूप ।
467.तत्त्व प्रकाश: - तत्व का प्रकाश करनेवाले ।
468.शुद्ध: - सबको पवित्र करनेवाले ।
469.बुद्ध: - ज्ञानवान् ।
470.नित्यमुक्त: - सदा मुक्तस्वरूप ।
471.भक्तराज: - भगवद्भक्तों में देदीप्यमान ।
472.जयद्रथ: - आक्रमण में जय प्राप्त करनेवाले ।
473.प्रलय: - शत्रुओं के लिये प्रलयंकर ।
474.अमितमाय: - अनंत माया जाननेवाले ।
475.मायातीत: - सर्वथा मायाजाल से रहित ।
476.विमत्सर: - ईर्ष्या से रहित्।
477.माया भर्जितरक्ष: - अपनी माया से राक्षसों को भून डालनेवाले ।
478.मायानिर्मित विष्टप: - माया से भुवनों की सृष्टि करनेवाले ।
479.मायाश्रय: - माया का आश्रय लेनेवाले ।
480.निर्लेप: - निरासक्त रहनेवाले ।
481.मायानिर्वर्तक: - माया शक्ति द्वारा कार्य सम्पन्न करनेवाले ।
482.सुखम्: - सुखस्वरूप।
483.सुखी: - सदा सुख से रहनेवाले ।
484.सुखप्रद: - सुख प्रदान करनेवाले ।
485.नाग: - नागस्वरूप ।
486.महेशकृतसंस्तव: - शंकरजी के द्वारा स्तुत ।
487.महेश्वर: - महान् ऐश्वर्यशाली ।
488.सत्यसन्ध: - सत्यवादी ।
489.शरभ: - शरभ नामक पशु के समान महान् बलशाली ।
490.कलिपावन: - कलियुग को पवित्र करनेवाले ।
491.सहस्रकन्धर बलविध्वंसन विचक्षण: - हजारों सिरवाले रावण के बल को विध्वंस करने में चतुर ।
492.सहस्रबाहु: - हजारों भुजाबाले ।
493.सहज: - सहज स्थितिस्वरूप।
494.द्विबाहु: - दो बाहुवाले ।
495.द्विभुज: - दो भुजाओंवाले ।
496. अमर: - अविनाशी।
497.चतुर्भुज: - चार भुजावाले ।
498.दशभुज: - दस भुजावाले ।
499.हयग्रीव: - अश्व के समान गर्दंवाले ।
500.खगानन: - गरुड़के समान मुखवाले ।

501.कपिवक्त्र: - कपि-सदृश मुखवाले ।
502.कपिपति: - वानरों की रक्षा करनेवाले ।
503.नरसिंह: - नरसिन्ह के समान विकराल रूप धारण करनेवाले ।
504. महाद्युति: - अत्यंत तेजस्वी ।
505.भीषण: - युद्ध में भयंकररूप ।
506.भावग: - भगवद्भाव को प्राप्त।
507.वन्द्य: - वंदना करने योग्य ।
508.वराह: - वराह – मुखवाले ।
509.वायुरूपधृक्: - वायु का रूप धारण करनेवाले ।
510.लक्ष्मण प्राणदाता: - लक्ष्मण को ( संजीवनी लाकर ) जिलानेवाले ।
511.पराजित दशानन: - दशानन (रावण ) – को पराजित करनेवाले ।
512.पारिजात निवासी: - पारिजात वृक्ष के नीचे निवास करनेवाले ।
513.वटु: - ब्रह्मचारीस्वरूप
514.वचन कोविद: - बोलने में अति चतुर ।
515.सुरसास्यविनिर्मुक्त: - सुरसा के मुख से सुखपूर्वक निकल आनेवाले ।
516.सिंहिका प्राणहारक: - सिंहि का राक्षसी का प्राण हरनेवाले ।
517.लङ्कालङ्कारविध्वंसी: - लंका की शोभा को नष्ट करनेवाले ।
518.वृषदंशकरूपधृक्: - वृषदंशक अर्थात् विडाल का रूप धारण करनेवाले ।
519.रात्रिसंचार कुशल: - रात में घूमने में चतुर ।
520.रात्रिंचरगृहाग्निद: - राक्षसों के घरों में आग लगानेवाले ।
521.किङ्करान्तकर: - रावण के सेवकों को मार डालनेवाले ।
522.जम्बुमालिहक्ता: - जम्बुमाली राक्षस को मारनेवाले ।
523.उग्ररूपधृक्: - उग्ररूप धारण करनेवाले ।
524.आकाशचारी: - आकाश में विचरण करनेवाले ।
525.हरिग: - प्रभु को प्राप्त करनेवाले ।
526.मेघनादरणोत्सुक: - मेघनाद के साथ युद्ध करने के लिये उत्कण्ठित ।
527.मेघगम्भीरनिनदो: - बादल के समान गम्भीर शब्द करनेवाले ।
528.महारावणकुलान्तक: ‌- महारावण के कुल को नष्ट करनेवाले ।
529.कालनेमिप्राणहारी: - कालनेमि राक्षस का प्राण हरनेवाले ।
530.मकरीशापमोक्षद: - मकरी को शाप से मुक्त करनवाले ।


531.रस: - रसस्वरूप ।
532.रसज्ञ: - रस को जाननेवाले।
533.सम्मान: - प्रभुका सम्यक् सम्मान करनेवाले ।
534.रूपम् – रूप स्वरूप ।
535.चक्षु: - चक्षुस्वरूप ।
536.श्रुति: - श्रवणस्वरूप ।
537.वच: - वाणीस्वरूप ।
538.घ्राण: - नासिकास्वरूप ।
539.गन्ध: - गंधरूप ।
540.स्पर्शनम्: - स्पर्शरूप ।
541.स्पर्श: - सम्पर्क- ज्ञानस्वरूप ।
542.अहङ्कारमानग: - अहंकार के स्वरूप को प्राप्त होनेवाले ।
543.नेतिनेतीतिगम्य: - नेति-नेति शब्दों द्वारा गम्य ।
544.वैकुण्ठ भजन प्रिय: - भगवान् के भजन में प्रीति रखनेवाले ।
545.गिरीश: - पर्वतों के ईश ।
546.गिरिजाकान्त: - माता पार्वती के प्रिय शंकरस्वरूप ।
547.दुर्वासा: - दुर्वासा मुनिस्वरूप ।
548.कवि: - कविस्वरूप ।
549.अङ्गिरा: - अङ्गिरा मुनिरूप ।
550.भृगु: - भृगु मुनिस्वरूप ।
551.वसिष्ठ: - वशिष्ठ्मुनिस्वरूप ।
552.च्यवन: -च्यवन ऋषिस्वरूप ।
553.नारद: - नारदमुनिस्वरूप ।
554.तुम्बर: - तुम्बरु गंधर्वस्वरूप ।
555.अमल: - दोषरहित ।
556.विश्वक्षेत्र: - विश्वक्षेत्रस्वरूप।
557.विश्वबीज: - विश्वबीज अर्थात् कारणस्वरूप ।
558.विश्वनेत्र: - सर्वद्रष्टा ।
559.विश्वप: - विश्वके पालक ।
560.याजक: - यज्ञकर्मा ।
561.यजमान: - प्रधान होतारूप ।
562.पावक: - अग्निरूप ।
563.पितर: - जगत् के माता पिता ।
564.श्रद्धा: - श्रद्धास्वरूप ।
565.बुद्धि: - बुद्धिस्वरूप ।
566.क्षमा: - क्षमास्वरूप ।
567.तन्द्रा: - तंद्रारूप ।
568.मन्त्र: - मंत्रस्वरूप ।
569.मन्त्रयिता : - शुभ मंत्र देनेवाले ।
570.सुर: - देवस्वरूप ।
571.राजेन्द्र: - राजाओं में श्रेष्ठ ।
572.भूपती: - पृथ्वी के पालक ।
573.रुण्डमाली: - रुण्डों के मालावाले ।
574.संसार सारथि: - भक्तों को भवसिन्धु पार करने में सहायक ।
575.नित्य सम्पूर्ण काम: - सदा सभी कामनाओं से तृप्त ।
576.भक्त कामधुक्: - भक्तों की कामनाओं के दोग्धा ।
577.उत्तम: - श्रेष्ठ ।
578.गणप: - वानरगणों के पालक ।
579.केशव: - घुँघराले केशवाले ।
580.भ्राता: - भ्रातृस्वरूप ।
581.पिता: - पितारूप ।
582.माता: - वात्सल्यमयी मातारूप ।
583.मारुति: - पवनदेवता के पुत्र ।
584.सहस्रमूर्द्धा: - हजारों सिरवाले ।
585.अनेकास्य: - अनेक मुखवाले ।
586.सहस्राक्ष: - सहस्त्रों नेत्रवाले ।
587.सहस्रपात्: - सहस्त्रों पैरवाले ।
588.कामजित्: - कामदेव को जीतनेवाले ।
589.कामदहन: - काम को जलानेवाले ।
590.काम: - सौन्दर्यशाली ।
591.कामफलप्रद: - कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।
592.मुद्रापहारी: - श्रीराम मुद्रिका को ले जानेवाले ।
593.रक्षोघ्न: - राक्षसों का नाशकरनेवाले ।
594.क्षिति भारहा: - पृथ्वी का भार उतारनेवाले ।
595.बल: - शत्रु- सन्हारक ।
596.नखदंष्ट्रायुध: - नख और दंष्ट्रारूप शस्त्र धारण करनेवाले ।
597.विष्णु: - व्यापकस्वरूप ।
598.भक्ताभय वरप्रद: - भक्त को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
599.दर्पहा: - दर्प का नाश करनेवाले ।
600.दर्पद: - उत्साह प्रदान करनेवाले ।

हनुमान साठिका (HANUMAN SATHIKA)
हनुमान साठिका का प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को सारी जिंदगी किसी भी संकट से सामना नहीं करना पड़ता । उसकी सभी कठिनाईयाँ एवं बाधाएँ श्री हनुमान जी आने के पहले हीं दूर कर देते हैं। हर प्रकार के रोग दूर हो जाती हैं तथा कोई भी शत्रु उस मनुष्य के सामने नहीं टिक पाता । Read More

हनुमान बाहुक (HANUMAN BAHUK)
एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी बहुत बीमार हो गये । भुजाओं में वात-व्याधि की गहरी पीड़ा और फोड़े-फुंसियों के कारण सारा उनका शरीर वेदना का स्थान-सा बन गया था। उन्होंने औषधि, यन्त्र, मन्त्र, त्रोटक आदि अनेक उपाय किये, किन्तु यह रोग घटने के बदले दिनों दिन बढ़ता ही जाता था। Read More
बजरंग बाण पाठ महात्मय
श्री बजरंग बाण- बजरंग बाण तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में रचित हनुमान जी का पाठ है । बजरंग बाण यानि की भगवान महावीर हनुमान रूपी बाण जिसके प्रयोग से हमारी सभी तरह की विपदाओं, दु:ख, रोग, शत्रु का नाश हो जाता है।Read More
श्री हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्रम (HANUMAN SAHASRANAMAM STOTRAM)
जो भी मनुष्य सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है उसके समस्त दु:ख नष्ट हो जाते हैं तथा उसकी ऋद्धि –सिद्धि चिरकाल तक स्थिर रहती है। प्रतिदिन डेढ़ मास तक इस हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्र का तीनों समय पाठ करने से सभी उच्च पदवी के लोग साधक के अधीन हो जाते हैं । Read More