राजसुख के दाता हैं शनिदेव, जानिए शनि की महिमा...

shanidev

'तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्'
शनिदेव प्रसन्न (संतुष्ट) होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे छीन लेते हैं। शनिदेव के प्रसन्न होने पर व्यक्ति को सर्वत्र विजय, धन, काम, सुख और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।

शनिदेव की कृपा प्राप्ति व कष्टमुक्ति का अचूक उपाय : शनि स्तोत्र का पाठ, शनि प्रतिमा का पूजन व दान करें। जिनको शनिदेव की कृपा प्राप्त करनी हो उन्हें चाहिए कि वे शनिदेव की एक लोहे की प्रतिमा बनवाएं जिसकी 4 भुजाएं हों- उनमें धनुष, त्रिशूल, बाण और वर मुद्रा अंकित कराएं।
पीड़ा परिहार के लिए स्त्री/पुरुष शनिवार को व्रत रखकर, तैलाभ्यंग स्नान करके शनि पूजा के लिए बैठें। शनिदेव की लोहे की मूर्ति को काले तिल के ढेर के ऊपर स्थापित करें। तिल के तेल या सरसों के तेल से शनिदेव की मूर्ति का अभिषेक-स्नान करें। मंत्र सहित विधिपूर्वक पूजन करते हुए कुमकुम से तिलक करें। नीले पुष्प, काली तुलसी, शमी के पत्ते, उड़द, गुड़ आदि अर्पित करें।
शनि पूजन, जप व दान का संकल्प निम्न प्रकार से लें-
हाथ में जल लेकर कहें- मम जन्मराशे: सकाशात् अनिष्टस्थानेस्थितशने: पीड़ा परिहार्थं एकादशस्थानवत् शुभफलप्राप्त्यर्थं लोहप्रतिमायां शनैश्चपूजनं तत्प्रीतिकरं स्तोत्र जपं एवं दानंच करिष्ये।। (पृथ्वी पर जल छोड़ें)।
अथ: ध्यानम्-
अहो सौराष्ट्रसंजात छायापुत्र चतुर्भुज।
कृष्णवर्णार्कगोत्रीय बाणहस्त धनुर्धर।।
त्रिशूलिश्च समागच्छ वरदो गृध्रवाहन।
प्रजापतेतु संपूज्य: सरोजे पश्चिमेदले।।
ध्यान के पश्चात उक्त प्रकार से श्री शनिदेव का विधिवत पूजन करें। शनिदेव की प्रतिमा पूजन के बाद राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का 10 हजार की संख्या में जप करें।
श्री शनि स्तोत्र
ॐ कोणस्थ: पिंगलोबभ्रु कृष्णो रौद्रान्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्लाश्रय संस्थित:।।

जो व्यक्ति प्रतिदिन अथवा प्रति शनिवार को पीपल वृक्ष पर जल अर्पित करके शनिदेव के उपरोक्त नामों- कोणस्थ, पिंगल, बभु्र, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मन्द, पिप्लाश्रय संस्थित को पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर जपेगा उसको शनि की पीड़ा कभी नहीं होगी।
एक बार शनिदेव पिप्लाद मुनि आश्रित हो गए थे तथा पिप्लाद मुनि ने शनिदेव को अंतरिक्ष में स्थापित किया था इसलिए शनिदेव का दसवां नाम 'पिप्लाश्रय संस्थित' पड़ा है।
महर्षि पिप्लाद मुनि ने भगवान शिव की प्रेरणा से शनिदेव की स्तुति की थी, जो इस प्रकार है-
नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरुपाय कृष्णायच नमोस्तुते।।
नमस्ते रोद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।।
नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।

इस नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए शनिदेव का तेलाभिषेक करें (तेल चढ़ाएं) व कुमकुम से तिलक करें। काले उड़द, काले तिल, नीले फूल व सिक्का (पैसा) चढ़ाएं। गुड़ का भोग लगाएं। > शनि के इन स्तुति मंत्रों का शनिवार को प्रात:काल शनि की होरा में अथवा प्रतिदिन 10 बार, 1 माला, 10 माला अथवा 10 हजार की संख्या में जप करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है। || समाप्त॥


जिस तरह थोडी सी औषधि., भयंकर रोगों को शांत कर देती है...,*
*उसी तरह....ईश्वर की थोडी सी स्तुति....बहुत से कष्ट और दुखों का नाश कर देती है...!!!"*
*जय श्री गणेश*

मन उजियारा जग उजियारा

वैदिक ग्रंथों में मन को सर्वशक्तिमान ईश्वर का स्वरूप ब्रह्म संबोधित किया है। उसे सृष्टि का निर्माता ब्रह्मा कहा गया है। इस जगत में इससे अधिक बलशाली कुछ नहीं है। यह प्रकाशक होकर ज्योति रूप में विद्यमान विद्या (ज्ञान) का द्योतक है। त्रिकाल इसमें ही है। इसके शुचि होने से दुनिया में हिंसा, द्वेष, द्वंद्व सहित समस्त अनीति से होने वाले विनाश से बचा जा सकता है !
उपनिषदों के अनुसार मन अभीष्ट सिद्धि में वाहन का कर्म करता है। इससे असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। मन में निवास करने वाली इच्छाशक्ति और उत्साह को पति-पत्नी के संबंध से वर्णित किया गया है। संकल्प (विचार) से इच्छाशक्ति का जन्म हुआ है। संकल्प मन से ही उत्पन्न होने पर सफल होता है। संकल्प शक्ति (विचार शक्ति) से किसी भी आध्यात्मिक, भौतिकीय क्षेत्र पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इसके अभाव में चींटी मारना भी दुष्कर कर्म है।
सा ते काम दुहिता धेनुरुच्यते,
यामाहुर्वाचं कवयो विराजम्‌।
तया सपत्नान्‌ परि वृङ्ग्धि ये मम,
पर्येनान्‌ प्राणः पशवो जीवनं वृणक्तु

अथर्ववेद

अर्थात्‌ हे इच्छाशक्ति! उस तुम्हारी पुत्री को कामधेनु कहते हैं, जिनको विद्वान्‌जन विराट वाणी कहते हैं। उस वाणी से मेरे शत्रुओं का नाश करो। इन शत्रुओं को प्राणशक्ति, पशुधन और जीवन पूर्णतया छोड़ दें।
जिस प्रकार मन में भावों का उदय होता है, उसी तरह की वाणी व व्यवहार दृश्यमान होता है। जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली कामधेनु है, उसका रिश्ता मन से सीधा है। जिसकी ताकत अणु-परमाणु अस्त्र-शस्त्र से अधिक है। जिसकी गति से अधिक किसी की भी चाल नहीं है। जिसके संचालन के लिए किसी बृहत्‌ भौतिक प्रबंधन की जरूरत नहीं है। जो जनसामान्य में असामान्य होकर सदैव विराजमान है। इस रत्नरूपी लक्ष्मी की पूजा व प्रयोग करके हम अपने जीवन को समृद्ध बना सकते हैं।
मन की पवित्रता एवं विचार शक्ति के माध्यम से साधनहीन वन में तप करके जनकल्याण के लिए जो सूत्र हमारे ऋषियों ने दिए, वे विज्ञान की संतृप्त अवस्था के नाम से जाने जाते हैं। इससे अधिक मूल्यवान लक्ष्मी कुछ नहीं है।
हमारी मन की शक्ति में शुद्ध-पवित्र विचार आएं एवं इन संकल्प को प्राप्त करने की इच्छाशक्ति सभी को मिले। जो प्रत्येक जन के लिए सहज-सुलभ हैं। यही शुभकामना है।

हनुमान वडवानल स्तोत्र - √ बड़ी-से-बड़ी विपत्ति टालने के लिये... ⇒.पूरा पढे


पंच मुखि हनुमत्कवचं | - √ शत्रुओं के नाश के लिये ... ⇒पूरा पढे


हनुमान जी की पंचोपचार पूजा विधि √ संक्षिप्त विधि ... ⇒पूरा पढे


अथ श्री एक मुखि हनुमत्कवचं - √ अर्थ सहित ... ⇒ पूरा पढे


हनुमद् बीसा - √ सभी शत्रु को तत्काल नष्ट करने के लिये ... ⇒पूरा पढे


हनुमान जी के बारह नाम - √ यात्रा पर जाने या न्याय सम्बंधि कार्यों के पहले करें ... ⇒पूरा पढे