रामद्रोही
ऐसे व्यक्ति को किन यातनाओं एवं प्रताड़नाओं से गुजरना पड़ता है , रामचरित्रमानस में तुलसी दास जी ने इंद्र के पुत्र जयंत के माध्यम से बताया है ! इस रोचक कथा को तुलसीदास जी के शब्दों में ही पढ़िए और इसे व्यापक अर्थ में समझकर अपनी जिज्ञासा को शांत करें !
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥
एक बार सुंदर फूल चुनकर राम ने अपने हाथों से भाँति-भाँति के गहने बनाए और सुंदर स्फटिक शिला पर बैठे हुए प्रभु ने आदर के साथ वे गहने सीता को पहनाए।
सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा॥
जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा॥
देवराज इंद्र का मूर्ख पुत्र जयंत कौए का रूप धरकर रघुनाथ का बल देखना चाहता है। जैसे महान मंद बुद्धि चींटी समुद्र का थाह पाना चाहती हो।
सीता चरन चोंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा॥
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना॥
वह मूढ़, मंद बुद्धि कारण से (भगवान के बल की परीक्षा करने के लिए) बना हुआ कौआ सीता के चरणों में चोंच मारकर भागा। जब रक्त बह चला, तब रघुनाथ ने जाना और धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण संधान किया।
दो० - अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह॥ ॥
रघुनाथ, जो अत्यंत ही कृपालु हैं और जिनका दीनों पर सदा प्रेम रहता है, उनसे भी उस अवगुणों के घर मूर्ख जयंत ने आकर छल किया॥ 1॥
प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा॥
धरि निज रूप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं॥
मंत्र से प्रेरित होकर वह ब्रह्मबाण दौड़ा। कौआ भयभीत होकर भाग चला। वह अपना असली रूप धरकर पिता इंद्र के पास गया, पर राम का विरोधी जानकर इंद्र ने उसको नहीं रखा।
भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा॥
ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका॥
तब वह निराश हो गया, उसके मन में भय उत्पन्न हो गया; जैसे दुर्वासा ऋषि को चक्र से भय हुआ था। वह ब्रह्मलोक, शिवलोक आदि समस्त लोकों में थका हुआ और भय-शोक से व्याकुल होकर भागता फिरा।
काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही॥
मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना॥
(पर रखना तो दूर रहा) किसी ने उसे बैठने तक के लिए नहीं कहा। राम के द्रोही को कौन रख सकता है? (काकभुशुंडि कहते हैं -) है गरुड़! सुनिए, उसके लिए माता मृत्यु के समान, पिता यमराज के समान और अमृत विष के समान हो जाता है।
मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी॥
सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता॥
मित्र सैकड़ों शत्रुओं की-सी करनी करने लगता है। देवनदी गंगा उसके लिए वैतरणी (यमपुरी की नदी) हो जाती है। हे भाई! सुनिए, जो रघुनाथ के विमुख होता है, समस्त जगत उनके लिए अग्नि से भी अधिक गरम (जलानेवाला) हो जाता है।
नारद देखा बिकल जयंता। लगि दया कोमल चित संता॥
पठवा तुरत राम पहिं ताही। कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही॥
नारद ने जयंत को व्याकुल देखा तो उन्हें दया आ गई; क्योंकि संतों का चित्त बड़ा कोमल होता है। उन्होंने उसे (समझाकर) तुरंत राम के पास भेज दिया। उसने (जाकर) पुकारकर कहा – हे शरणागत के हितकारी! मेरी रक्षा कीजिए।
आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई॥
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। मैं मतिमंद जानि नहिं पाई॥
आतुर और भयभीत जयंत ने जाकर राम के चरण पकड़ लिए (और कहा - ) हे दयालु रघुनाथ! रक्षा कीजिए। आपके अतुलित बल और आपकी अतुलित प्रभुता (सामर्थ्य) को मैं मंद बुद्धि जान नहीं पाया था।
निज कृत कर्म जनित फल पायऊँ। अब प्रभु पाहि सरन तकि आयऊँ॥
सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी॥
अपने किए हुए कर्म से उत्पन्न हुआ फल मैंने पा लिया। अब हे प्रभु! मेरी रक्षा कीजिए। मैं आपकी शरण तककर आया हूँ। (शिव कहते हैं - ) हे पार्वती! कृपालु रघुनाथ ने उसकी अत्यंत आर्त्त (दुःखभरी) वाणी सुनकर उसे एक आँख का काना करके छोड़ दिया।
सो० – कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित।
प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम॥ 2॥
उसने मोहवश द्रोह किया था, इसलिए यद्यपि उसका वध ही उचित था, पर प्रभु ने कृपा करके उसे छोड़ दिया। राम के समान कृपालु और कौन होगा?॥ 2॥
( विशेष ---- विषय वासनाओं से पीड़ित व्यक्ति, धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की अवमानना करने वाले व्यक्ति में अवगुण पैदा हो जाते है ! ऐसे व्यक्ति को अंत में शांति ईश्वर के नाम में आस्था रखने एवं उसके बनाये विधान को समझ कर आचरण ( कर्म ) करने पर ही मिलती है !)
अपने अन्तःकरण में परोपकार की पवित्र भावना उत्पन्न करने के लिए गाय का दूध पीए, मक्खन, घृत , ऋतु फल खाये, सूखे मेवे, शहद, गन्ना एवं जेविक खाद से उत्पन्न अन्न ( सत्व गुण युक्त )खाये जिससे आपका मन देविक विचार उत्पन्न करे l आप भाग्यशाली है कि ये ज्ञान ( पवित्र गीता अध्याय १४ वर्णित " सृष्टि त्रिगुणात्मक == सत्व, रज, तामस ) केवल सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथो में लिपिबद्ध है l दुनिया के और किसी धर्म के पास नहीं है l अतः अपने आप को गौरवांवित महसूस करें l
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