३ बार राम का नाम = १००० राम का नाम
3 times Ram's name = 1000 Ram's name

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
एक गुरु युवा बालकों के एक समूह को विष्णु सहस्त्रनाम सिखा रहे थे. गुरु ने श्लोक दोहराया:
श्री राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥
फिर उन्होंने लड़कों से कहा, “अगर तुम तीन बार राम नाम का जाप करते हो तो यह सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या १००० बार ईश्वर के नाम का जाप करने के बराबर है.”
उनमें से एक लड़का अध्यापक से सहमत नहीं था. उसने शिक्षक से प्रशन किया, “गुरूजी! ३ बार = १००० बार कैसे हो सकता है? मुझे इसका तर्क समझ में नहीं आया. ३ नाम = १००० नाम कैसे?
ज्ञानी तथा निपुण गुरु, जो भगवान राम के एक महान भक्त थे, ने अति सरलता से समझाया, “भगवान शिव कहतें हैं कि भगवान राम का नाम सभी शब्दों से अधिक मधुर है और इस नाम का जाप, सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के १००० नामों के जाप के समतुल्य है.”
इस बात की पुष्टि करने के लिए कि ३ बार राम नाम का जाप = १००० बार या सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम के जाप के बराबर है, यहाँ एक दिलचस्प संख्यात्मक गणना है-
राम के नाम में संस्कृत के दो अक्षर हैं- र एवं म
र (संस्कृत का द्वितीय व्यंजन : य, र, ल, व, स, श)
म (संस्कृत का पाँचवा व्यंजन : प, फ, ब, भ, म)
र और म के स्थान पर २ तथा ५ रखने से राम = २x५= १०
अतः तीन बार राम राम राम बोलना = २ x ५ x २ x ५ x २ x ५ = १० x १० x १० = १०००. इस प्रकार ३ बार राम नाम का जाप १००० बार के बराबर है.
बालक इस उत्तर से प्रसन्न हुआ और उसने पूरी एकाग्रता और निष्ठा से विष्णुसहस्त्रनाम सिखना शुरू कर दिया.
आइए इस जिज्ञासु बालक का धन्यवाद करते हुए इस जानकारी को अधिकतम बंधुओं में फैलाएँ और प्रतिदिन सुबह- शाम राम नाम का जाप कम-से-कम १००० बार करें.
सीख :
जब किसी रीति-रिवाज़ या पूजा को करने का अर्थ या उद्देश्य दूसरों, खासकर बच्चों, को समझाते हैं तो वे इन्हें सराहते हैं. और इनका अभिप्राय समझकर, जबरदस्ती में नहीं अपितु श्रद्धा से, इनका पालन करते हैं. ज्ञान व अनुभव द्वारा बुद्धिमत्ता आती है.! माता सरस्वती का एक नाम वाणी है ! शुभ शब्दों के उच्चारण से माता सरस्वती प्रसन्न होती है है और प्रारब्ध ( भाग्य ) में ज्ञान का संचय होता है जबकि हिंसात्मक वाणी के प्रयोग से (झूठ ,गाली गलोच एवं कठोर भाषा एवं वाणी से माता दुखी होती है ! अतः अध्यात्म से जुड़े शब्दों का ही प्रयोग हमारे विचारों को सकारात्मक ऊर्जा की ओर ले जाते है !

*ज्ञान के बाद यदि अहंकार का जन्म होता है, तो वो ज्ञान जहर है।*
*किन्तु......*
*ज्ञान के बाद यदि नम्रता का जन्म होता है, तो यही ज्ञान अमृत होता है॥*
जय प्रथम पूज्य श्रीगणेश ज़ी
*सत्य वह दौलत है जिसे, पहले खर्च करो और जन्म जन्मांतर /जिंदगी भर आनंद पाओ,*
*झुठ वह कर्ज है जिससे क्षणिक सुख पाओ पर जन्म जन्मांतर तक चुकाते रहो।*
जय श्री सीताराम जय बजरंग बली

शरणागति क्या है ?

शरणागति के 4 प्रकार है
1. जिह्वा से भगवान के नाम का जप- भगवान् के स्वरुप का चिंतन करते हुए उनके परम पावन नाम का नित्य निरंतर निष्काम भाव से परम श्रद्धापूर्वक जप करना तथा हर समय भगवान् की स्मृति रखना।
2. भगवान् की आज्ञाओं का पालन करना- श्रीमद्भगवद्गीता जैसे भगवान् के श्रीमुख के वचन, भगवत्प्राप्त महापुरुषों के वचन तथा महापुरुषों के आचरण के अनुसार कार्य करना।
3. सर्वस्व प्रभु के समर्पण कर देना-वास्तव मे तो सब कुछ है ही भगवान् का,क्योंकि न तो हम जन्म के समय कुछ साथ लाये और न जाते समय कुछ ले ही जायेंगे। भ्रम से जो अपनापन बना रखा है,उसे उठा देना है।
4 .भगवान् के प्रत्येक विधान मे परम प्रसन्न रहना-मनचाहा करते-करते तो बहुत-से जन्म व्यतीत कर दिए,अब तो ऐसा नही होना चाहिए।अब तो वही हो जो भगवान् चाहते है। भक्त भगवान् के विधानमात्र मे परम प्रसन्न रहता है फिर चाहे वह विधान मन,इंद्रिय और शरीर के प्रतिकूल हो या अनुकूल।
ॐ नमो नारायणायः

जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !

सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास।
सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।।

गौ माता को बचाये और देवताओं का आशीर्वाद एवं कृपा प्राप्त करे !

साथ ही अपने प्रारब्ध ( भाग्य ) में पुण्य संचित करे ! यह एक ऐसा पुण्य है जिससे इहलोक में देवताओ से सुख समृद्धि मिलती है एवं परलोक में स्वर्ग !

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इस घोर कलियुग में वही परिवार सुख पायेगा !
गौमाता को पहली रोटी देकर हरिनाम गुण गायेगा !!
दया प्रेम सब जीवों पर करके सेवाभाव अपनायेगा !
गुरूजनों की आज्ञा मान माता पिता के चरण दबायेगा !!
गीता रामायण भागवत के द्वारा सोये मन को जगाता हूँ !
भूखों को भोजन पानी देकर पशु पंक्षियों को चुगाता हूँ !!
ईष्या,क्रोध ,आलस्य,वैमनष्यता ,बुराई का त्याग करे !
सेवा,प्रेम,करूणा,ममता,दया,क्षमा को अपनाये !!
जय गौमाता

गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं। इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं। ऋग्वेद में गौ को ‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।

बहुत कुछ सीखा और जाना
पर खाक सीखा और जाना
जब, उसी को न जाना,
जिसके पास है जाना

"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर

सर्वदेवमयी यज्ञेश्वरी गौमाता को नमन, जय गौमाता की

शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि ! परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो ! प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो ! शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो ! जय गौमाता की

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