801.मेघनादरिपु: - मेघनाद के शत्रु ।
802.मेघनादसंहतराक्षस: - जिनकी मेघ – तुल्य गर्जना से राक्षस नष्ट हो जाते हैं ।
803.क्षर: - प्रकृतिकार्यस्वरूप ।
804.अक्षर: - अविनाशी आत्मस्वरूप ।
805.विनीतात्मा: - विनम्र –स्वभाव ।
806.वानरेश: - वानरों के ईश ।
807.सताङ्गति: - संतों की गति ।
808.श्रीकण्ठ: - शोभायमान कण्ठवाले ।
809.शितिकण्ठ: - नीलकण्ठ भगवान् शंकरस्वरूप ।
810.सहाय: - सहायता करनेवाले ।
811.सहनायक: - अपने स्वामी श्रीराम के साथ रहनेवाले ।
812.अस्थूल: - सूक्ष्मस्वरूप ।
813.अनणु: - महान् ।
814.भर्ग: - आभायुक्त ।
815.दिव्य: - दिव्यरूपधारी ।
816.संसृतिनाशन: - भवबंधन को मिटानेवाले ।
817.अध्यात्म विद्यासार: - अध्यात्मविद्या के सार-तत्व ।
818.अध्यात्म कुशल: - अध्यात्मविद्या में कुशल।
819.सुधी: - सुंदर बुद्धिवाले ।
820.अकल्मष: - निष्पाप ।
821.सत्यहेतु: - सत्यस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति करानेवले ।
822.सत्यद: - सत्य प्रदान करनेवाले ।
823.सत्यगोचर: - सत्य से दृष्टिगोचर होनेवाले ।
824.सत्यगर्भ: - सत्य आशयवाले
825.सत्यरूप: - सत्य ( प्रशस्त ) रूप –सौंदर्य से युक्त ।
826.सत्य: - सत्यस्वरूप ।
827.सत्यपराक्रम: - जिनका पराक्रम निष्फल नहीं होता ।
828.अञ्जनाप्राणलिङ्ग: - माता अंजना के प्राणप्यारे पुत्र ।
829.वायुवंशोद्भव: - वायुदेवता के वंशमें उत्पन्न ।
830.शुभ: - कल्याणप्रद ।
831.भद्ररूप: - मङ्गलमय स्वरूपवाले ।
832.रुद्ररूप: - शंकरस्वरूप ।
833.सुरूप: - सुन्दर स्वरूपवाले ।
834.चित्ररूपधृक्: -चित्र- विचित्र रूप धारण करनेवाले ।
835.मैनाकवन्दित: - मैंनाकपर्वतद्वारा वंदित ।
836.सूक्ष्मदर्शन: - सूक्ष्मदृष्टि वाले ।
837.विजय: - अर्जुनस्वरूप ।
838.जय: - विष्णु के दवारपालस्वरूप ।
839.क्रान्तदिङ्मण्डल: - दिशाओं के पार जानेवाले ।
840.रुद्र: - आर्द्रानक्षत्ररूप ।
841.प्रकटीकृतविक्रम: - अपने पराक्रम को प्रकट करनेवाले ।
842.कम्बुकण्ठ: - शंख के समान सुंदर गर्दनवाले ।
843.प्रसन्नात्मा: - सदा प्रसन्न चित्त रहनेवाले ।
844.ह्रस्वनास: - छोटी नासिकावाले ।
845.वृकोदर: - भेड़ियों के समान बड़े उदरवाले ।
846.लम्बौष्ठ: - बड़े-बड़े ओठवाले ।
847.कुण्डली: - कानों मे कुण्डल धारण करनेवाले ।
848.चित्रमाली: - चित्र- विचित्र पुष्पों की माला पहननेवाले ।
849.योगविदां वर: - योगवेत्तओं में श्रेष्ठ ।
850.विपश्चितकवि – तत्वज्ञ कवि ।
851.आनन्दविग्रह: - मूर्तिमान् आनंद ।
852.अनल्पशासन: -सबके ऊपर शासन करनेवाले ।
853.फाल्गुनी सूनु: - पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे उत्पन्न होनेवाले फाल्गुनीपुत्र ।
854.अव्यग्र: - कभी व्याकुल न होनेवाले ।
855.योगात्मा: - योगस्वरूप ।
856.योगतत्पर: - योग में तत्पर रहनेवाले ।
857.योगवित्: - योग के ज्ञाता ।
858.योगकर्ता: - योग को बनानेवाले ।
859.योग योनि: - योग की उत्पत्तिके कारण ।
860.दिगम्बर: - दिशारूपी वस्त्रधारी ।
861.अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मित विग्रह: - सर्ववर्णस्वरूप ।
862.उलूखलमुख: - ओखली के समान मुखार-विंदवाले ।
863.सिद्धसंस्तुत: - सिद्धपुरुषों के दवारा जिनकी सम्यक् रीति से स्तुति होती है ।
864.प्रमयेश्वर: - भूतगणों के स्वामी ।
865.श्लिष्टजङ्घ: - सटी हुई जंघावाले ।
866.श्लिष्टजानु: - मिले हुए घुटनोंवाले ।
867.श्लिष्टपाणि: - मिले हुए हाथोंवाले ।
868.शिखाधर: - चोटी धारण करनेवाले ।
869.सुशर्मा: - सुंदर सुख देनेवाले ।
870.अमितशर्मा: - असीम सुख देनेवाले ।
871.नारायण परायण: - भगवान् नारायण में लीन रहनेवाले ।
872.जिष्णु: -जीतनेवाले ।
873.भविष्णु: - भविष्य में होनेवाले ।
874.रोचिष्णु: - कांतिमान्।
875.ग्रसिष्णु: - सर्वसन्हार करनेवाले शिवस्वरूप ।
876.स्थाणु: - स्थिर रहनेवाले ।
877.हरिरुद्रानुसेक: - भगवान् विष्णु और शंकर का अभिषेक करनेवाले ।
878.कम्पन: - शत्रुओं को कम्पित करनेवाले ।
879.भूमिकम्पन: - पृथ्वी को कम्पित करनेवाले ।
880.गुण प्रवाह: - गुणों के प्रवाह अर्थात् सर्वगुणसमपन्न ।
881.सूत्रात्मा: - यज्ञोपवीतधारी ।
882.वीतराग स्तुतिप्रिय: - वीतराग पुरुष के द्वारा की गयी स्तुति जिन्हें प्रिय लगती है ।
883.नागकन्याभयध्वंसी: - नागकन्याओं के भय का ध्वंस करनेवाले ।
884.रुक्मवर्ण: - सुवर्ण के समान वर्णवाले ।
885.कपालभृत: - कपाल धारण करनेवाले ।
886.अनाकुल: - व्यग्रतारहित ।
887.भवोपाय: - भवसागर पार करने के लिये उपायरूप ।
888.अनपाय: - भगवान् श्रीराम से कभी वियुक्त न होनेवाले ।
889.वेदपारग: - वेदों में पारंगत ।
890.अक्षर: - अविनाशी ।
891.पुरुष: - बुद्धिरूपी पुरी में सोनेवाले ।
892.लोकनाथ: - सम्पूर्ण लोकों के स्वामी ।
893.ऋक्षःप्रभु: -नक्षत्रों के स्वामी अर्थात् चंद्रस्वरूप ।
894.दृढ: - हृष्ट – पुष्ट शरीर ।
895.अष्टाङ्गयोगफलभुक्: - अष्टाङ्गयोग के फलका उपभोग करनेवाले ।
896.सत्यसन्घ: - दृढ़ मैत्रीवाले ।
897.पुरुष्टुत: - - देवताओं के द्वारा संस्तुत ।
898.श्मशानस्थाननिलय: - श्मशान में निवास करनेवाले ।
899.प्रेतविद्रावणक्षम: - प्रेत को तुरंत भगाने में समर्थ ।
900.पञ्चाक्षरपर: - ‘ नम : शिवाय ’ इस प्रधान पञ्चाक्षर मंत्र को जपनेवाले ।
901.पञ्चमातृक: - सीता, उर्मिला , माण्डवी ,श्रुतिकीर्ति और अंजना – इन पाँच माताओंवाले ।
902.रञ्जनध़्वज: - लाल रंग की ध्वजावाले ।
903.योगिनीवृन्द वन्द्य श्री: - योगिनीवृन्द के द्वारा वन्दनीय शोभास्वरूप।
904.शत्रुघ्न: - शत्रुओं को हनन करनेवाले ।।
905.अनन्त विक्रम: - अपार पराक्रमशाली ।
906.ब्रह्मचारी: - ब्रह्म में विचरण करनेवाले ।
907.इन्द्रियरिपु: - इंद्रियों के शत्रु अर्थात् जितेंद्रिय ।
908.धृतदण्ड: - दण्दधारी ( गदाधारी )।
909.दशात्मक: - दशावतारस्वरूप ।
910.अप्रपञ्च: - संसार के प्रपञ्चसे रहित ।
911.सदाचार: - सदाचारयुक्त ।
912.शूरसेनाविदारक: - शूर पुरुषों की सेना को विदीर्ण करनेवाले ।
913.वृद्ध: - सब प्रकार से बड़े ।
914.प्रमोद: - प्रमोद-वृतिस्वरूप ।
915.आनन्द: - आनंद स्वरूप ।
916.सप्तद्वीपपतिन्धर: - सप्तद्वीपपतियों को धारण करनेवाले ।
917.नवद्वारपुराधार: - नवद्वारवाले पुर अर्थात् शरीरों के आधार ।
918.प्रत्यग्र: - सबके आगे चलनेवाले ।
919.सामगायक: - सामवेद का गान करनेवाले ।
920.षट्चक्रचाम: - सहस्त्रार आदि षट्चक्रों में परमात्मरूप से निवास करनेवाले ।
921.स्वर्लोकाभयकृत: -स्वर्गलोक को अभय करनेवाले ।
922.मानद: - मान देनेवाले ।
923.मद: - सम्पूर्ण अहंकृतिरूप ।
924.सर्ववश्यकर: - सबको वश में करनेवाले ।।
925.शक्ति: - शक्तिस्वरूप ।
926.अनन्त: - जिनके गुणों का अंत नहीं है ।
927.अनन्तमङ्गल: - जो अनंत मंगलों से पूर्ण हैं ।
928.अष्टमूर्ति: - पंच भूत, सुर्य , चंद्र , और आत्मा -ये आठ जिनकी मूर्ति अर्थात् स्वरूप हैं ।
929.नयोपेत: - नीतिमान्।
930.विरूप: - विविध रूपवाले ।
931.सुरसुन्दर: - देवताओं से भी अधिक सुंदर ।
932.धूमकेतु: - अग्निस्वरूप ।
933.महाकेतु: - विशाल बुद्धिवाले ।
934.सत्यकेतु: - जिनका सत्य आदर्श है ।
935.महारथ: - महारथी ।
936.नन्दिप्रिय: - नन्दि( शिववाहन ) जिनके प्रिय हैं ।
937.स्वतन्त्र: - जो किसी के अधीन नहीं हैं ।
938.मेखली: - कटिसूत्र धारण करनेवाले ।
939.डमरुप्रिय: - जिनको डमरू प्रिय है उस शिव के स्वरूप ।
940.लौहाङ्ग: - लोहे के समान दृढ़ शरीरवाले ।
941.सर्ववित्: - सब कुछ जाननेवाले।
942.धन्वी: - धनुर्धर ।
943.खण्डल: - द्रोणागिरि को खण्डित कर लानेवाले ।
944.शर्व: - शिवस्वरूप ।
945.ईश्वर: - ईश्वरस्वरूप ।
946.फलभुक्: - फल खानेवाली वानररूप ।
947.फलहस्त: - जिनके करकमल में फल है ।
948.सर्वकर्मफलप्रद: - सब कर्मों का फल प्रदान करनेवाले ।
949.धर्माध्यक्ष: - धर्म-निधि के अध्यक्ष ।
950.धर्मपाल: - धर्म का पालन करनेवाले । ।
951.धर्म: - धर्मस्वरूप ।
952.धर्मप्रद: - न्यायधर्म के दाता ।
953.अर्थद: - अर्थ प्रदान करनेवाले ।
954.पञ्चविंशतितत्त्वज्ञ: - पचीस तत्वों के यथार्थ ज्ञाता ।
955.तारक: - भवसागर से तारनेवाले ।
956.ब्रह्मतत्पर: - परब्रह्म में तत्पर ।
957.त्रिमार्गवसति: - ज्ञानयोग , भक्तियोग और कर्मयोग – इन तीनों मार्गों के निवास-स्थल ।
958.भीम: - भयंकरस्वरूप ।
959.सर्वदुःख निबर्हण: - सारे दु:खों को दूर करनेवाले ।
960.ऊर्जस्वान्: - बलशाली ।
961.निष्कल: - निर्गुण ब्रह्मस्वरूप ।
962.शूलि: - शूल धारण करनेवाले ।
963.मौलि: - किरीट धारण करनेवाले ।
964.गर्जन्निशाचर: - रात्रि में गर्जते हुए विचरण करनेवाले अर्थात् नि:शंक ।
965.रक्ताम्बरधर: - लाल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
966.रक्त: - लाल वर्णवाले ।
967.रक्तमाल्य: - लाल रंग की माला से सुशोभित ।
968.विभूषण: - अलंकारस्वरूप ।
969.वनमाली: - वन्य पुष्पों की माला पहननेवाले ।
970.शुभाङ्ग: - मंगलस्वरूप ।
971.श्वेत: - श्वेत स्वरूप ।
972.श्वेताम्बर: - शुक्ल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
973.युवा: - सदा तरुणस्वरूप।
974.जय: - विजेता ।
975.अजयपरीवार: - जिसका विजय ही परिवार है ।
976.सहस्रवदन: - सहस्त्र मुखवाले ।
977.कपि: - कपिस्वरूप ।
978.शाकिनी डाकिनी यक्षरक्षो भूतप्रभञ्जक: - शाकिनी, डाकिनी , यक्ष , राक्षस,भूत आदिका नाश करनेवाले ।
979.सद्योजात: - तुरंत प्रकट होनेवाले।
980.कामगति: -स्वच्छंद घूमनेवाले ।
981.ज्ञानमूर्ति: - ज्ञान की साक्षात मूर्ति ।
982.यशस्कर: - यशस्वी।
983.शम्भुतेजा: - भगवान् शंकर के समान तेजस्वी ।
984.सार्वभौम: - सब संसार के अधिपति ।
985.विष्णुभक्त: - भगवान् विष्णु के भक्त।
986.प्लवङ्गम: - मर्कटस्वरूप ।
987.चतुर्नवतिमन्त्रज्ञ: - चौरानबे मंत्रों के ज्ञाता ।
988.पौलस्त्यबलदर्पहा: - रावण के बल के घमंड को नष्ट करनेवाले ।
989.सर्वलक्ष्मीप्रद: - सारे ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाले ।
990.श्रीमान: - सर्वैश्वर्यशाली ।
991.अङ्गदप्रिय: - अंगद के प्यारे ।
992.ईडित: - स्तुत्य ।
993.स्मृतिबीजम् – स्मृतियों के बीज ।
994.सुरेशान: - देवताओं के स्वामी ।
995.संसार भय नाशन: - संसार के भय का नाश करनेवाले ।
996.उत्तम: - श्रेष्ठ ।
997.श्रीपरीवार: - श्री ( माता जानकी ) – के पुत्र ।
998.श्रित: - आश्रयवान्।
999.रुद्र: - रुद्रस्वरूप ।
1000. कामधुक्: - सारी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।