हनुमान और बाली के युद्ध का रहस्य |
Secret of Fight amongst Hanuman and Bali

Hanuman and Bali

किष्किंधा के राजा बाली के विषय में तो हम सभी जानते हैं । रामायण के अनुसार बाली को उसके धर्म पिता इन्द्र ने एक सोने का हार दिया था । इंद्र द्वारा दिया गया हार बहुत शक्तिशाली था । इस हार को ब्रह्मा जी ने मंत्र युक्त कर यह वरदान दिया था कि इसको पहन कर बाली जब भी रणभूमि में अपने दुश्मन का सामना करेगा तो उसके दुश्मन की आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाएगी । इस कारण से बालि लगभग अजेय हो गया था । बाली को अपने बल पर बहुत घमंड था । जिसके चलते वो तीनो लोक में सभी को युद्ध करने की चुनौती देता रहता था ।

एक दिन बाली अपने ताकत के मद में चूर एक जंगल में जोर-जोर से चिल्ला रहा था । पेड़ पौधों को उखाड़कर फेंक रहा था । और बार बार स्वयं से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था । और कह रहा था कि है । कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो । उसी समय जंगल के बीच हनुमान जी तपस्या कर रहे थे । बाली के इस स्वर से हनुमान जी को राम नामक जप करने में विघ्न हो रहा था । और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले । हे वीरों के वीर ब्रह्मा के अंश राजकुमार बाली आपको कोई नहीं हरा सकता पर आपक्यों इस प्रकार शोर मचा रहे हो ।

हनुमान जी ने बाली से अपने बल पर घमंड न करते हुए राम नाम का जाप करने की सलाह दी । जिससे बालि क्रोधित हो गया । अपने क्रोध में बालि ने हनुमान जी को युद्ध की चुनौती दे डाली। बाली ने कहा हनुमान तुम क्या तुम्हारे प्रभु राम भी मुझको नहीं हरा सकते हैं । अपने प्रभु राम को मुझसे युद्ध करने के लिए बुलाओ । बाली के द्वारा अपने आराध्य श्रीराम का अपमान किए जाने से हनुमान क्रोधित हो उठे । और बालि की चुनौती को स्वीकार कर लिया । तय हुआ कि अगले दिन सर्योदय के साथ ही दोनों के बीच नगर के बीचों बीच युद्ध होगा । अगले दिन तय समय पर जब हनुमान बाली से युद्ध के लिए निकलने ही वाले थे । कि तभी उनके सामने ब्रह्माजी प्रकट हुए । उन्होंने हनुमान जी को समझाने की कोशिश की, कि वे बालीकीचुनौती को स्वीकार न करें ।

तब हनुमान जी ने ब्रह्मा से कहा कि हे प्रभु जब तक बाली मुझे ललकार रहा था तब तक तो ठीक था पर उसने मेरे प्रभु श्रीराम का अपमान किया है । मैं इस युद्ध से अब पीछे नहीं हट सकता । इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि हे हनुमान ठीक है आप इस युद्ध के लिए जाओ पर अपनी शक्ति का 10वां भाग लेकर ही जाओ । इस पर हनुमान जी ने ब्रह्मा जी का मान रखते हुए उनकी बात मान ली और अपनी शक्ति का 10वां भाग लेकर युद्ध स्थल पहुंचे । युद्ध के मैदान मे कदम रखते ही वरदान के मुताबिक हनुमान जी की आधी शक्ति बाली के शरीर में चली गई ।

जैसे ही हनुमान जी की शक्ति बाली के शरीर में प्रवेश हुई । उसके शरीर में हलचल पैदा होने लगी उसे लगने लगा जैसे उसका शरीर अभी फट जाएगा । अपनी ये अवस्था देख बालि को कुछ समझ नहीं आया और वो भागने लगा । एक जगह पर आकर वो रुका और वहीं पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए । ब्रह्मा जी ने बाली से कहा कि तुम खुद को दुनिया में सबसे ताकत वर समझते हो लेकिन तुम्हारा शरीर हनुमान की शक्ति का छोटा सा हिस्सा नहीं संभाल पा रहा है । जिसके बाद बाली को एहसास हुआ कि वो क्या गलती कर रहा था ।

उसने हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला अथाह बल होते हुए भी आप शांत रहते हैं और राम भजन गाते रहते हैं और मैं आपके एक बाल के बराबर भी नही हूं और आपको ललकार रहा था । प्रभु मुझे क्षमा कर दीजिये । हनुमान जी ने बाली को क्षमा कर दिया । इस तरह वानर राज बाली का घमंड चूर हो गया ।

जामबंत ने बजरंगबली से कहा की हिमालय पर्वत पर पहुंचकर तुम्हे दो पर्वत ऋषभ और कैलाश दिखाई देंगे इन दोनों पर्वतो के ठीक बीच में एक औषधियों से भरा पर्वत दिखाई देगा । इस पर्वत पर चार औषधियां मृतसंजीवनी, विशल्यकरणी, सुवार्न्करनी और संधानी नाम की औषधियां होगी इन औषधियों की चमक से सभी दिशाएं चमकती हैं । उन महाऔषधियों को लेकर जल्द से जल्द यंहा आओ ।

जामबंत जी की बात को सुनकर तुरंत ही बजरंगबली हिमालय के लिए निकल गए और कुछ समय में ही बो हिमालय पर पहुँच गए । हनुमान जी ने वंहा बजरंगबली पहुंचकर कैलाश और ऋषभ दोनों पर्वतो देखा और उस औषधियों बाले पर्वत को भी देखा और उस पर जाकर औषधियों को खोजने लगे । चूँकि ये सारी औषधियां चमत्कारी थी जिससे जब उन्हें यह पता चला की कोई उन्हें लेने आया है तो बो सब महा औषधियां अद्रश्य हो गयी । इससे हनुमान जी बहुत ही क्रोधित हो गए और क्रोधित होकर सम्पूर्ण पर्वत को ही जिस पर बो महाऔषधियां लगी हुई थी लेकर आ गये ।

पर्वत को लेकर कुछ समय में ही हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण जी के पास पहुँच गए । बजरंगबली को संजीवनी बूटी के साथ देखकर पूरी सेना में उत्साह छा गया और लक्ष्मण जी का उपचार किया गया जिससे कुछ समय में ही लक्ष्मण जी और समस्त वानर सेना स्वास्थ हो गयी । इसके बाद श्री राम की आज्ञा से बजरंगबली इस पर्वत को वापस उसी स्थान पर रख आते है जंहा से बो इस पर्वत को लेकर आये थे ।

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