हनुमान जी ने क्यों किया सत्यभामा ,गरुड़ और सुदर्शन चक्र का घमण्ड चूर
Why did Hanuman ji boast the pride of Satyabhama, Garuda and Sudarshan Chakra
एक समय की बात है जब भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा,उनके अस्त्र सुदर्शन चक्र तथा वाहन गरुड़ तीनो को अपनी सुंदरता,शक्ति और गति पर अभिमान हो गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनके अभिमान को दूर करने के लिए श्री हनुमानजी की सहायता ली थी। क्या थी पूरी कथा आइये मिलकर जानते हैं। कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को स्वर्ग से पारिजात लाकर दिया था। तब से वह स्वंय को श्रीकृष्ण की अत्यंत प्रिया और खुद को सुंदरी मानने लगी थी। वहीँ सुदर्शन चक्र को भी यह अभिमान हो गया था कि उसने इंद्र के वज्र को परास्त किया था। भगवान श्रीकृष्ण हमेशा उसकी ही सहायता लेते हैं। जबकि भगवान कृष्ण का वाहन गरुड़ ये समझता था की मेरी गति का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। और भगवान मेरे बिना कहीं जा ही नहीं सकते।
जब श्रीकृष्ण तक ये खबर पहुंची की किसी वानर ने राजोद्यान को उजाड़ दिया है तो श्रीकृष्ण ने गरुड़ को बुलाया और कहा अपने साथ सेना ले जाओ और उस वानर को पकड़कर लाओ। गरुड़ ने कहा प्रभु एक मामूली वानर को पकड़ने के लिए सेना की क्या जरूरत है मैं अकेला ही उसे मजा चखा दूंगा। कृष्ण मन ही मन मुस्करा दिए और कहा जैसा तुम चाहो। भगवान की आज्ञा लेकर गरुड़ उद्यान में गए और हनुमानजी को ललकारा बाग क्यों उजाड़ रहे हो चलो तुम्हें श्रीकृष्ण बुला रहे हैं। तब हनुमानजी ने कहा मैं किसी कृष्ण को नहीं जानता। मैं तो श्री राम का सेवक हूं जाओ और जाकर कह दो की मैं नहीं आऊंगा। इस पर गरुड़ को क्रोध आ गया और वे हनुमानजी से युद्ध करने लगे। तब हनुमान जी ने अपनी पूंछ बढ़ाई और गरुड़ को दबोच लिया। फिर पूंछ को एक झटका दिया और गरुड़ को दूर समुद्र में फेंक दिया। बड़ी मुश्किल से गरुड़ अपनी जान बचाते हुए दरबार में पहुंचा।
गरुड़ ने भगवान कृष्ण को बताया की वह कोई साधारण वानर नहीं है। मैं उसे पकड़कर नहीं ला सकता। गरुड़ की बातें सुनकर भगवान मुस्करा दिए। सोचा गरुड़ के बलशाली होने का घमंड तो दूर हो गया लेकिन अभी इसके वेग के घमंड को चूर करना शेष है। श्री कृष्ण ने कहा गरुड़ हनुमान श्रीरामजी का भक्त है। इसीलिए नहीं आये। यदि तुम कहते कि श्रीराम ने बुलाया है तो फौरन भागे चले आते। हनुमान अब मलय पर्वत पर चले गए हैं तुम तेजी से जाओ और उनसे कहना श्रीराम ने उन्हें बुलाया है। तुम तेज उड़ सकते हो तुम्हारी गति भी बहुत है उन्हें साथ लेते आना। गरुड़ वेग से उड़कर मलय पर्वत पर पहुंचे। हनुमानजी से क्षमा मांगी कहा श्रीराम ने आपको बुलाया है। अभी आओ मेरे साथ मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बिठाकर मिनटों में द्वारिका ले जाऊंगा। तुम खुद चलोगे तो देर हो जाएगी मेरी गति बहुत तेज है। तुम मुकाबला नहीं कर सकते। हनुमानजी मुस्कराए भगवान की लीला समझ गए कहा तुम जाओ मैं तुम्हारे पीछे ही आ रहा हूं। इधर द्वारिका में श्रीकृष्ण राम रूप धारणकर सत्यभामा को सीता बना सिंहासन पर बैठ गए। और सुदर्शनचक्र को आदेश दिया द्वार पर रहना कोई बिना आज्ञा अंदर न आ पाए।
हनुमान जी द्वारा पर्वत उठाकर ले जाने का प्रसंग वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चलाकर श्रीराम व लक्ष्मण सहित समूची वानर सेना को घायल कर दिया। अत्यधिक घायल होने के कारण जब श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए तो मेघनाद प्रसन्न होकर वहां से चला गया। उस ब्रह्मास्त्र ने दिन के चार भाग व्यतीत होते-होते 67 करोड़ वानरों को घायल कर दिया था।
श्रीकृष्ण समझते थे कि श्रीराम का संदेश सुनकर तो हनुमान जी एक पल भी रुक नहीं सकते। अभी आते ही होंगे गरुड़ को तो हुनमान जी ने विदा कर दिया और स्वयं उस से भी तीव्र गति से उड़कर गरुड़ से पहले ही द्वारका पहुंच गए। दरबार के द्वार पर सुदर्शन ने उन्हें रोक लिया और कहा बिना आज्ञा अंदर जाने की मना है। जब श्रीराम बुला रहे हों तो हनुमानजी विलंब सहन नहीं कर सकते। उन्होंने सुदर्शन चक्र को पकड़ा और मुंह में दबा लिया। इसके बाद वो दरबार में आ गए जहाँ सिंहासन पर श्रीराम और सीता जी बैठे थे। हुनमानजी सब समझ चुके थे।
श्रीराम को प्रणाम किया और कहा प्रभु आने में देर तो नहीं हुई। साथ ही कहा प्रभु मां सीता कहां है ? आपके पास आज यह दासी कौन बैठी है ? सत्यभामा ने जब यह सुना तो बहुत लज्जितहुई,इतनी सजने सँवरने के बाद भी हनुमान जी ने उसे दासी समझा। सत्यभामा का अपनी सुंदरता का घमंड चूर हो गया। तभी गरुड़ तेज गति से उड़ने के कारण हांफते हांफते दरबार में पहुंचा। गरुड़ की सांस फूल रही थी। हनुमानजी को दरबार में पहले पहुंचा देखकर वह चकित हो गए और हमुमान जी के चरणों में गिर पड़े। इस तरह गरुड़ के बल का और तेज गति से उड़ने का घमंड भी चूर हो गया।
तब कृष्णा रुपी श्रीराम ने पूछा हनुमान तुम अंदर कैसे आ गए? क्या द्वार पर किसी ने रोका नहीं था। हनुमानजी ने कहा प्रभु सुदर्शनचक्र ने मुझे रोका था मगर मैंने सोचा आपके दर्शनों में विलंब होगा। इसलिए उनसे उलझा नहीं और उन्हें मैंने अपने मुंह में दबा लिया। और यह कहकर हनुमानजी ने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभुके चरणों में डाल दिया। श्रीकृष्ण ने हनुमानजी को गले लगा लिया।
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