यहां हजारो साल से वर्जित है हनुमान जी की पुजा जानिये क्यों?
हिन्दू धर्म के देवी देवताओं में प्रमुख आराध्य देवों में से हनुमान जी एक है और समस्त भारत में हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है । पूरे भारत देश में हनुमान जी के कई विशाल मंदिर मौजूद है, मगर शायद आपको यह जानकारी नहीं होगी की भारत में एक ऐसी जगह भी है जंहा हनुमान जी की पूजा अर्चना नहीं की जाती है । यह जगह उत्तराखंड राज्य के द्रोणागिरी गाँव है, यंहा के लोग हनुमान जी की पूजा इसलिए नहीं करते है क्योंकि वो हनुमान जी द्वारा किये गए एक काम से आज तक नाराज है –
द्रोणागिरी गाँव
द्रोणागिरी गांव उत्तराखंड राज्य के चमोली जनपद के जोशीमठ नीति मार्ग पर स्थित समुद्रतल से लगभग 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित गाँव है । इस गाँव के निवासियों की मान्यता है की लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी बाले पहाड़ को हनुमान जी इसी गांव से लेकर गये थे । इस गांव के निवासी उस पहाड़ की पूजा अर्चना करते थे और जब हनुमान जी उस पहाड़ को उठा ले गये तो ये लोग हनुमान जी से नाराज हो गए और आज तक इस बात पर नाराज है । इसी वजह से न तो इस गांव में लाल झंडे का प्रयोग किया जाता है और ना ही हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है ।
द्रोणागिरी के निवासियों के अनुसार हनुमान जी की पूजा वर्जित क्यों है
इस गाँव के निवासियों के अनुसार जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरी गाँव पहुंचे तो बे भ्रमित हो गए उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था की किस पहाड़ पर संजीवनी बूटी है और किस पर नहीं । ठीक उसी समय उन्हें एक बुजुर्ग महिला दिखाई दी तब हनुमान जी ने उस बुजुर्ग महिला से पुछा की माता संजीवनी बूटी किस पहाड़ पर मिलेगी । तब उस बुजुर्ग महिला ने हनुमान जी को बूटी बाला पर्वत दिखाया और हनुमान जी तुरंत उड़कर उस पहाड़ पर पहुँच गए । मगर वंहा पहुँच कर उन्हें कुछ समझ ही नहीं आया तो बो फिर से उस महिला के पास पहुंचे और पूछा की उस पहाड़ पर संजीवनी बूटी कंहा मिलेगी इसपर उस महिला ने हनुमान जी को बो जगह दिखा दी ।
तब बजरंगबली ने संजीवनी बूटी बाले एक बड़े हिस्से को तोड़कर ले कर चले गए । जब द्रोणागिरी के निवासियों को इस बात का पता चला की बजरंगबली पहाड़ ले कर चले गए है और इसी गाँव की एक महिला ने उनकी मदद की है । तब से उस महिला का समाज से बहिष्कार कर दिया गया और हनुमान जी की पूजा को प्रतिबंधित कर दिया गया । आज भी इस गाँव में आराध्य देव पहाड़ की पूजा के समय महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है और ना ही उनके द्वारा बनी किसी भी सामग्री को प्रयोग नहीं किया जाता है ।
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार
हनुमान जी द्वारा पर्वत उठाकर ले जाने का प्रसंग वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चलाकर श्रीराम व लक्ष्मण सहित समूची वानर सेना को घायल कर दिया। अत्यधिक घायल होने के कारण जब श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए तो मेघनाद प्रसन्न होकर वहां से चला गया। उस ब्रह्मास्त्र ने दिन के चार भाग व्यतीत होते-होते 67 करोड़ वानरों को घायल कर दिया था।
वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण के युद्ध काण्ड में बजरंगबली द्वारा संजीवनी लाने के लिए पहाड़ को उठा कर ले जाने का उल्लेख मिलता है । जब मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र को चलाकर लक्ष्मण जी को घायल कर दिया तब मेघनाद वंहा से खुश होकर चला गया की लक्ष्मण की तो मृत्यु हो गयी मगर जब बजरंगबली जामबंत और बिभीषण राम और लक्ष्मण के पास आये तब बिभीषण ने हनुमान जी से कहा की सिर्फ तुम ही लक्ष्मण जी को बचा सकते हो इसके लिए तुरंत हिमालय पर्वत पर जाओ और वंहा से औषधियों को लेकर आओ जिससे लक्ष्मण जी के साथ बाकी सेना को भी बचाया जा सके ।
जामबंत ने बजरंगबली से कहा की हिमालय पर्वत पर पहुंचकर तुम्हे दो पर्वत ऋषभ और कैलाश दिखाई देंगे इन दोनों पर्वतो के ठीक बीच में एक औषधियों से भरा पर्वत दिखाई देगा । इस पर्वत पर चार औषधियां मृतसंजीवनी, विशल्यकरणी, सुवार्न्करनी और संधानी नाम की औषधियां होगी इन औषधियों की चमक से सभी दिशाएं चमकती हैं । उन महाऔषधियों को लेकर जल्द से जल्द यंहा आओ ।
जामबंत जी की बात को सुनकर तुरंत ही बजरंगबली हिमालय के लिए निकल गए और कुछ समय में ही बो हिमालय पर पहुँच गए । हनुमान जी ने वंहा बजरंगबली पहुंचकर कैलाश और ऋषभ दोनों पर्वतो देखा और उस औषधियों बाले पर्वत को भी देखा और उस पर जाकर औषधियों को खोजने लगे । चूँकि ये सारी औषधियां चमत्कारी थी जिससे जब उन्हें यह पता चला की कोई उन्हें लेने आया है तो बो सब महा औषधियां अद्रश्य हो गयी । इससे हनुमान जी बहुत ही क्रोधित हो गए और क्रोधित होकर सम्पूर्ण पर्वत को ही जिस पर बो महाऔषधियां लगी हुई थी लेकर आ गये ।
पर्वत को लेकर कुछ समय में ही हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण जी के पास पहुँच गए । बजरंगबली को संजीवनी बूटी के साथ देखकर पूरी सेना में उत्साह छा गया और लक्ष्मण जी का उपचार किया गया जिससे कुछ समय में ही लक्ष्मण जी और समस्त वानर सेना स्वास्थ हो गयी । इसके बाद श्री राम की आज्ञा से बजरंगबली इस पर्वत को वापस उसी स्थान पर रख आते है जंहा से बो इस पर्वत को लेकर आये थे ।
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