श्री हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्रम
Shree Hanuman Sahasranamam Stotram
जो भी मनुष्य हनुमान जी को अपना इष्ट देव मानते हैं उन्हें श्री हनुमत्-सहस्त्रनाम का पाठ प्रतिदिन करना चाहिये । इस सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ जो मनुष्य करता है उसके समस्त दु:ख नष्ट हो जाते हैं तथा उसकी ऋद्धि –सिद्धि चिरकाल तक स्थिर रहती है।
प्रतिदिन डेढ़ मास तक इस हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्र का तीनों समय पाठ करने से सभी उच्च पदवी के लोग साधक के अधीन हो जाते हैं । पीपल के जड़ पर बैठ कर पाठ करने से शत्रुजन्य भय नष्ट होता है तथा समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है । इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के रोग (ज्वर, अपस्मार, मिर्गी, हिस्टीरिया आदि) नष्ट हो जाते हैं तथा सुख, सम्पत्ति आदि प्राप्त होते हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की कृपा से साधक को स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो प्राणी इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है एवं सुनता अथवा सुनाता है, वह पवन पुत्र की कृपा से सभी मनोवांछित फल को प्राप्त करता है ।
इस स्तोत्र के प्रयोग से बंध्या स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होती है ।
सहस्त्रनाम रहस्य :-
यह हनुमत्सहस्त्रनाम का वर्णन ‘बृहज्ज्योतिषार्णव ’ में किया गया है । बाल्मीकिजी बोले सर्वप्रथम श्री रामचंद्रजी ने हनुमान सहस्त्रनाम से हनुमानजी की स्तुति की थी । तत्पश्चात् परब्रह्म परमेश्वर भगवान् श्री रामचंद्र जी का अपने हृदय में ध्यान कर प्रसन्नचित्त हो हनुमानजी ने इस प्रकार कहा- एकमात्र ध्यानैकगम्य परब्रह्म स्वरूप आप मेरे सम्मुख उपस्थित हुए हैं । हे स्वामिन् ! कृपासागर ! राम ! तुच्छ बुद्धि वानर स्वरूप होते हुए भी मैंने आपको पहचान लिया। समस्त चराचर मात्र तो आपके ही ध्यान में निरंतर रत रहते हैं और आप बड़ी ही श्रद्धापूर्वक मेरी स्तुति करते हैं । त्रिविध ताप रहित राघव ! इस स्थान पर आपके आने का कारण मैं भली भाँति समझ गया हूँ । अत: हे राम ! मुझे आप आज्ञा प्रदान कीजिये कि मैं आपकी क्या सेवा करूँ ? इस प्रकार हनुमानजी के कहने पर प्रसन्नचित्त हो , मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम ने हनुमानजी से इस प्रकार कहा कि ना जाने किस व्यक्ति ने जानकी का अपहरण किया है । अत: हे परमवीर ! मैं तुम्हें यह आज्ञा प्रदान करता हूँ कि तुम उस दुष्ट को मारकर शीघ्रता शीघ्र मेरे सम्मुख लाओ। उसे मेरे अधीन करो। हे मित्र ! तुम समस्त प्राणिमात्र को सुख प्रदान करो । हे वीर, आपके इस प्रकार कार्य करने पर मेरा समस्त अभीष्ट कार्य सिद्ध होगा । तत्पश्चात् परमवीर हनुमान जी अपने इष्ट्देव प्रभु राम की आज्ञा को शिरोधार्य कर सीताजी की खोज की थी ।
सहस्त्रनाम पाठ की विधि :-
हर एक मंगलवार एवं शनिवार को ब्रह्म मुहुर्त में स्नान कर हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने पूर्व दिशा में मुख करके आसन बिछाकर बैठ जायें । हनुमानजी के सम्मुख तेल की दीपक जलायें तथा धूप निवेदित करें । तत्पश्चात दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग “ॐ अस्य श्री हनुमत्सहस्त्रनाम ..” से आरम्भ कर “ जपे विनियोग ” तक पढ़कर भूमि पर जल छोड़ दें ।जिस कार्य के लिये हनुमान सहस्त्रनाम का पाठ किया जाये उसे विनियोग में “ मम सर्वोपद्रव शान्त्यर्थ ” की जगह बोलना चाहिये । जैसे पेट की पीड़ाके लिये “मम उदर पीड़ा शान्त्यर्थ” । इसके बाद न्यास तथा ध्यान कर के पाठ आरम्भ करें ।
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