सहस्त्रनाम पाठ
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ऋषय ऊचु:
सहस्त्रनामसन्मन्त्रं दु:खाघौघनिवारणम्।
वाल्मीकेब्रूहि नस्तूर्णं शूश्रूषाम: कथां पराम्॥13॥
ऋषिगण बोले – वालिमीकि जी ! हमलोग आपकी श्रेष्ठ कथा को बड़े ध्यानसे सुन रहे हैं । आप कृपया समस्त दु:ख एवं पापपुञ्ज को दूर करनेवाले हनुमत्सहस्त्रनामरूपी मंत्र का शीघ्र ही वर्णन करें ॥13॥
वाल्मीकिरुवाच
श्रृण्वन्तु ऋषय: सर्वे सहस्त्रनामकं स्तवम्।
स्तवानामुत्तमं दिव्यं सदर्थस्य प्रदायकम्॥14॥
वाल्मीकि जी बोले – ऋषियो ! आपलोग ध्यान से हनुमत्सहस्त्रनामस्तोत्र को सुनिये । यह स्तवों में उत्तम तथा सत्यप्रयोजन को सिद्ध करनेवाला दिव्य स्तोत्र है ॥14॥
इसका विनियोग इस प्रकार है –