सहस्त्रनाम पाठ
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सत्यमोङ्कारगम्यश्च प्रणवो व्यापकोऽमल: ।
शिवधर्मप्रतिष्ठाता रामेष्ट फाल्गुन प्रिय: ॥9॥
81. सत्यम्:- संतों के लिए हितकर ।
82. ॐकारगम्य: - ॐकारके द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
83. प्रणव: - ॐकारस्वरूप ।
84. व्यापक: - सर्वव्यापी ।
85. अमल: - दोषरहित ।
86. शिवधर्म प्रतिष्ठाता: - पाशुपत अथवा कल्याण- धर्म को प्रतिष्ठित करनेवाले ।
87. रामेष्ट:- जिनके श्रीराम इष्टदेव हैं ।
88. फाल्गुन प्रिय: -जो अर्जुन के प्रिय हैं ।
गोष्पदीकृतवारीश: पूर्णकामों धरापति: ।
रक्षोघ्न: पुण्डरीकाक्ष: शरणागतवत्सल: ॥10॥
89. गोष्पदीकृतवारीश: - समुद्र को जलपूरित गोपद के समान लाँघनेवाले ।
90. पूर्णकाम: -जिनकी सारी कामनाएँ पूर्ण हैं।
91. धरापति: -पृथ्वी के स्वामी ।
92. रक्षोघ्न: -राक्षसों को मारनेवाले ।
93. पुण्डरीकाक्ष: - श्वेत कमल के समान नेत्रवाले ।
94. शरणागतवत्सल: - शरण में आए हुये पर कृपा करनेवाले ।
जानकीप्राणदाता च रक्ष:प्राणापहारक: ।
पूर्ण: सत्य: पीतवासा दिवाकरसमप्रभ: ॥11॥
95. जानकीप्राणदाता: - जानकीको जीवन प्रदान करनेवाले ।
96. रक्षःप्राणापहारक: - राक्षसों का प्राण - नाश करनेवाले ।
97. पूर्ण:- पूर्णकाम ।
98. सत्य:- सत्यस्वरूप ।
99. पीतवासा: -पीला वस्त्र धारण करनेवाले ।
100.दिवाकर समप्रभ: - सूर्य के समान तेजस्वी ।