सहस्त्रनाम पाठ
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नगरग्रामपालश्च शुद्धो बुद्धो निरत्रप:।
निरञ्जनो निर्विकल्पो गुणातीतो भयंकर:॥31॥
240.नगरग्रामपाल: - नगर और ग्रामवासियों की रक्षा करनेवाले ।
241.शुद्ध: - शुद्धस्वरूप ।
242.बुद्ध: - ज्ञान स्वरूप ।
243.निरत्रप: - सलज्ज ।
244.निरञ्जन: -अज्ञान या माया से रहित ।
245.निर्विकल्प: - विकल्परहित ।
246.गुणातीत: - सत्त्वादि गुणों से रहित ।
247.भयङ्कर: - दुष्टों के लिये विकराल स्वरूपवाले ।
हनुमांश्र्च दुराध्यस्तप:साध्यो महेश्वर:।
जानकीधनशोकोत्थतापहर्ता परात्पर:॥32॥
248.हनुमान् – श्री राम के अनुचर ।
249.दुराराध्य: - अभक्तों के लिये कष्ट से आराधनीय ।
250.तपःसाध्य: - तप के द्वारा साध्य ।
251.महेश्वर: - महान् ईश्वर ।
252.जानकीधनशोकोत्थतापहर्ता: - जानकीधन अर्थात् श्रीरामके शोकसे उत्पन्न संताप को हरनेवाले ।
253.परात्पर: - जो अव्यक्त से भी परे हैं ।
वाङ्मय: सदसद्रूप: करणं प्रकृते: पर:।
भाग्यदो निर्मलो नेता पुच्छलङ्काविदाहक:॥33॥
254.वाङ्मय: - वेदशास्त्र- सरस्वतीस्वरूप ।
255.सदसद्रूप: - सत् और असत् स्वरूप ।
256.कारणम्: - संसार के अभिन्न निमित्तोपादन कारण ।
257.प्रकृतेः पर: - जो त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे हैं ।
258.भाग्यद: - कर्मजन्य शुभाशुभ फलों को देनेवाले ।
259.निर्मल: - मल अर्थात् दोष से रहित ।
260.नेता: - मार्गदर्शक ।
261.पुच्छलङ्काविदाहक: - पुच्छ से लंकाको जलानेवाले ।
पुच्छबद्ध्यातुधानो यातुधानरिपुप्रिय: ।
छायापहारी भूतेशो लोकेश: सद्गतिप्रद:॥34॥
262.पुच्छबद्धयातुधान: -पुच्छ से राक्षसों को बाँधनेवाले ।
263.यातुधानरिपुप्रिय: - राक्षसों के शत्रु श्रीराम के प्रिय ।
264.छायापहारी: - छायानाम की राक्षसीको मारनेवाले।
265.भूतेश:- भूतों के स्वामी ।
266.लोकेश: - लोकों के स्वामी ।
267.सद्गतिप्रद: - संतों को सद्गति प्रदान करनेवाले ।