सहस्त्रनाम पाठ
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चंद्रसूर्याग्निनेत्रश्च कालाग्नि: प्रलयान्तक:।
कपिल: कपिश: पुण्यराशिद्वादशराशिग:॥28॥
218.चन्द्रसूर्यग्निनेत्र: - चंद्र,सूर्य और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले शिवस्वरूप ।
219.कालाग्नि:- मृत्युकारी अग्निरूप ।
220.प्रलयान्तक: - प्रलय का अंत करनेवाले अर्थात् भक्तों को जन्म-मृत्यु से रहित करनेवाले।
221.कपिल: - काले- पीले वर्ण के रोम से युक्त ।
222.कपिश: - श्याम-पीतवर्ण मिश्रित कपिशवर्ण ।
223.पुण्य राशि: - पुण्यकी राशि ।
224.द्वादशराशिग: - द्वादश राशियों के ज्ञाता अर्थात् ज्योतिषशास्त्र के जाननेवाले ।
सर्वाश्रयोऽप्रमेयात्मा रेवत्यादिनिवारक:।
लक्ष्मणप्राणदाता च सीताजीवनहेतुक:॥29॥
225.सर्वाश्रय: - सबके आश्रय स्थान ।
226.अप्रमेयात्मा: - अनुपम शरीरवाले ।
227.रेवत्यादिनिवारक: - रेवती-पूतना आदि ग्रह- दोषों का निवारण करनेवाले ।
228.लक्ष्मण प्राणदाता: - संजीवनी द्वारा लक्ष्मणा जी को प्राण देनेवाले ।
229.सीताजीवन हेतुक: - श्री जानकी जी को श्रीराम का संदेश देकर जीवन प्रदान करनेवाले ।
रामध्येयो हृषीकेशो विष्णुभक्तों जटी बली ।
देवारिदर्पहा होता धाता कर्ता जगत्प्रभु: ॥30॥
230.रामध्येय: - श्री राम जिनका ध्यान-स्मरण करते हैं ।
231.हृषिकेश: - इन्द्रियों के स्वामी ।
232.विष्णुभक्त: - विष्णुके भक्त ।
233.जटी: - जटावाले ।
234.बली – बलशाली ।
235.देवारिदर्पहा: - देवशत्रुओंके दर्प को नष्ट करनेवाले ।
236.होता – भगवद्भक्तिका अनुष्ठान करनेवाले ।
237.धाता: - जगत् को धारण करनेवाले ।
238.कर्ता: - जगत् को बनानेवाले ।
239.जगत्प्रभु: - जगत् के स्वामी ।