सहस्त्रनाम पाठ
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देवेशो जितमारोऽथ रामभक्तिविधायक:।
ध्याता ध्येयो लय: साक्षी चेता चैतन्यविग्रह: ॥25॥
193.देवेश: - देवताओं के स्वामी ।
194.जितमार:- कामदेव को जीतनेवाले ।
195.रामभक्ति विधायक: - श्रीराम भक्ति का विधान करनेवाले ।
196.ध्याता: - रात- दिन श्रीराम का ध्यान करनेवाले ।
197.ध्येय: - मुनियों के द्वारा ध्येय ।
198.लय: - अपनेमें अखिल चराचर को विलीन करनेवाले ।
199.साक्षी: - सर्वद्रष्टा ।
200.चेता: - सर्वज्ञ ।
201.चैतन्य विग्रह: - चिन्मय शरीर वाले ।
ज्ञानद: प्राणद: प्राणो जगत्प्राण: समीरण:।
विभीषणप्रिय: शूर: पिप्लाश्रयसिद्धद:॥26॥
202.ज्ञानद: - ब्रह्मज्ञान के दाता ।
203.प्राणद: -प्राण (बल) प्रदान करनेवाले ।
204.प्राण: - जिससे प्राणी प्राणवाले हैं , अर्थात् प्राणस्वरूप ।
205.जगत्प्राण: - जगत् के प्राण ।
206.समीरण: - वायुरूप ।
207.विभीषणप्रिय: - विभीषण के प्यारे ।
208.शूर: - शत्रुओं को रण में सुलानेवाले ।
209.पिप्पलाश्रय सिद्धिद: - ( आनन्दरामायण के मनोहरकाण्डके अनुसार ) अश्वत्थ को गृह मानकर साधना करनेवाले साधक को सारी सिद्धियों प्रदान करनेवाले ।
सिद्ध: सिद्धाश्रय: कालो महोक्ष: कालजान्तक :।
लङ्केशनिधनस्थायी लङ्कादाहक ईश्वर ॥27॥
210.सिद्ध: -सिद्ध स्वरूप ।
211.सिद्धाश्रय: - सिद्धों के आश्रय ।
212.काल: - यमरूप ।
213.महोक्ष: - महान् धर्मरूपी बैलवाले
214.कालाजान्तक: - काल से उत्पन्न जरा- व्याधि आदि दोषों का अन्त करनेवाले ।
215.लङ्केशनिधनस्थायी: - रावण के विनाश के लिये स्थिरचित्त ।
216.लङ्कादाहक: - लंका को जलानेवाले ।
217.ईश्वर: - त्रिलोकी में परम ऐश्वर्यशाली ।