सहस्त्रनाम पाठ
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कृष्ण: कृष्णस्तुत: कृष्णस्तुत: शान्त: शान्तिदो विश्वपावन: ।
विश्वभोक्ताय मारघ्नो ब्रह्मचारी जितेंद्रिय: ॥22॥
170.कृष्ण: - कृष्णस्वरूप ।
171.कृष्णस्तुत: - कृष्ण के दवारा स्तुति किये गये ।
172.शान्त: - शांतस्वरूप ।
173.शान्तिपद: - शांति प्रदान करनेवाले ।
174.विश्वपावन: - विश्व को पवित्र करनेवाले ।
175.विश्वभोक्ता: - सारे भोग्य पदार्थों के भोक्ता ।
176.मारघ्न:- कामदेव का हनन करनेवाले ।
177.ब्रह्मचारी: - आजन्म ब्रह्मचारी ।
178.जितेन्द्रिय: - जिन्होंने इन्द्रियों को जीत लिया है ।
उर्ध्वगो लांगुली माली लाङ्गूलाहतराक्षस:।
समीरतनुजो वीरो वीरतारो जयप्रद: ॥23॥
179.ऊर्ध्वग: - आकाश-मार्ग से गमन करनेवाले ।
180.लाङ्गुली: - बड़ी पूँछवाले ।
181.माली: - मालावाले ।
182.लाङ्गूलाहत राक्षस: - पूँछ से राक्षसों को मार डालनेवाले ।
183.समीरतनुज: - वायुदेवता के पुत्र ।
184.वीर: - शौर्यशाली ।
185.वीरतार: - वीर शत्रुओं को मारकर तारनेवाले ।
186.जयप्रद: - जय प्रदान करनेवाले ।
जगन्मङ्गलद: पुण्य: पुण्य श्रवण कीर्तन: ।
पुण्यकीर्ति: पुण्यगतिर्जगत्पावनपावन:॥24॥
187.जगन्मङ्गलद: - जगत् को मङ्गल प्रदान करनेवाले ।
188.पुण्य: - भगवन्नाम- संकीर्तन से विश्वको पवित्र करनेवाले
189.पुण्यश्रवण कीर्तन: - जिनकी कथाओं का श्रवण – कीर्तन पुण्य प्रद है ।
190.पुण्यकीर्ति: - जिनका यशोगान पुण्यप्रद है।
191.पुण्यगति: - जिनकी उपासना पुण्य का फल है ।
192.जगत्पावनापावन: - जो जगत् को पवित्र करनेवालोंको पावन बनाते हैं ।