सहस्त्रनाम पाठ
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जगन्नाथ: कपीश्च सर्वावास: सदाश्रय:।
सुग्रीवादिस्तुतो दांत: सर्वकर्मा प्लवङ्गम:॥99॥

752.जगन्नाथ: - जगत् के स्वामी ।
753.कपीश: - वानरों के स्वामी ।
754.सर्वावास: - सबके निवासस्थान ।
755.सदाश्रय: - परमार्थपथ पर चलनेवालोंके आश्रय ।
756.सुग्रीवादिस्तुत: - सुग्रीव आदि वानर जिनकी स्तुति करते हैं ।
757.दान्त: - इन्द्रियों को वश में रखनेवाले ।
758.सर्वकर्मा: - कृतकृत्य ।
759.प्लवङ्गम: - वानररूप ।
नखदारितरक्षाश्च नखयुद्धविशारद:।
कुशल: सुधन: शेषो वासुकिस्तक्षकस्तथा॥100॥

760.नखदारितरक्षा: - नखों के दवारा राक्षसों को विदीर्ण करनेवाले ।
761.नखयुद्धविशारद: - नखयुद्ध में कुशल ।
762.कुशल: - परम निपुण ।
763.सुधन: - भक्तिरूपी ।
764.शेष: - शेषनागस्वरूप।
765.वासुकि: - वासुकिसर्पस्वरूप ।
766. तक्षक: - तक्षक स्वरूप ।
स्वर्णवर्णो बलाढ़्यश्र्च पुरुजेताघनाशन:।
कैवल्यरूप: कैवल्यो गरुड़: पन्नगोरग:॥101॥


767.स्वर्णवर्ण: - सोने के समान दीप्तवर्णवाले ।
768.बलाढ्य: - अति शक्तिशाली
769.पुरुजेता: - बहुल विजयी ।
770.अघनाशन: - पाप का नाश करनेवाले ।
771.कैवल्यरूप: - मुक्तिस्वरूप ।
772.कैवल्य: - अद्वयस्वरूप ।
773.गरुड़: - गरुड़रूप ।
774.पन्नगोरग: - लेटे-लेटे चलनेवाले तथा उरसे चलनेवाले अर्थात् हनुमान् जी सब प्रकार से चलनेवाले हैं ।

हनुमान साठिका (HANUMAN SATHIKA)
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