सहस्त्रनाम पाठ
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किल्किल्रावहतारातिर्गर्वपर्वत्भेदन:।
वज्राङ्गों वज्रदंष्ट्रश्च भक्तवज्रनिवारक:॥102॥
775.किल्किल् रावहताराति: - किल – किल शब्द से शत्रुओं का नाश करनेवाले ।
776.गर्वपर्वतभेदन: - गर्वरूप पर्वत को काट गिरानेवाले ।
777.वज्राङ्ग: - वज्र शरीर ।
778.वज्रदंष्ट्र: - वज्र के समान दाँतवाले
779.भक्तवज्रनिवारक: - भक्तों के ऊपर गिरते हुए वज्र को रोकनेवाले ।
नखायुधो मणिग्रीवो ज्वालामाली च भास्कर:।
प्रौढ़प्रतापस्तपनो भक्ततापनिवारक:॥103॥
780.नखायुध: - नख जिनके शस्त्र हैं ।
781.मणिग्रीव: - कण्ठ में मणि धारण करनेवाले ।
782.ज्वालामाली: - लंकादाह के समय अग्नि- ज्वालाकी माला धारण करनेवाले ।
783.भास्कर: - सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप ।
784.प्रौढप्रताप: - प्रवृद्ध प्रतापवाले
785.तपन: - सूर्यरूप।
786.भक्तताप निवारक: - भक्तों का संताप दूर करनेवाले ।
शरणं जीवनं भोक्ता नानाचेष्टो हृचञ्चल:।
स्वस्तिमान् स्वस्तिदो दु:खशातन: पवनात्मज:॥104॥
787.शरणम्: - शरणागत - रक्षक ।
788.जीवनम्: - सबके जीवनस्वरूप ।
789.भोक्ता: - सबको पालन करनेवाले ।
790.नानाचेष्ट: - अनेक चेष्टावाले ।
791.अचञ्चल: - स्वरूप में अटल रहनेवाले ।
792.स्वस्तिमान्: - कल्याणस्वरूप ।
793.स्वस्तिद: - कल्याण वितरण करनेवाले ।
794.दुःखनाशन: - दु:खों के नाशक ।
795.पवनात्मज: - पवन के पुत्र ।