सहस्त्रनाम पाठ
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अप्रपञ्च: सदाचार: शूरसेनाविदारक:।
वृद्ध: प्रमोद आनन्द: सप्तद्वीपपतिन्धर:॥121॥
910.अप्रपञ्च: - संसार के प्रपञ्चसे रहित ।
911.सदाचार: - सदाचारयुक्त ।
912.शूरसेनाविदारक: - शूर पुरुषों की सेना को विदीर्ण करनेवाले ।
913.वृद्ध: - सब प्रकार से बड़े ।
914.प्रमोद: - प्रमोद-वृतिस्वरूप ।
915.आनन्द: - आनंद स्वरूप ।
916.सप्तद्वीपपतिन्धर: - सप्तद्वीपपतियों को धारण करनेवाले ।
नवद्वारपुराधार: प्रत्यग्र: सामगायक:।
षट्चक्रधाम स्वर्लोकाभयकृन्मानदो मद:॥122।
917.नवद्वारपुराधार: - नवद्वारवाले पुर अर्थात् शरीरों के आधार ।
918.प्रत्यग्र: - सबके आगे चलनेवाले ।
919.सामगायक: - सामवेद का गान करनेवाले ।
920.षट्चक्रचाम: - सहस्त्रार आदि षट्चक्रों में परमात्मरूप से निवास करनेवाले ।
921.स्वर्लोकाभयकृत: -स्वर्गलोक को अभय करनेवाले ।
922.मानद: - मान देनेवाले ।
923.मद: - सम्पूर्ण अहंकृतिरूप ।
सर्ववश्यकर: शक्तिरनन्तोऽनन्तमङ्गल :।
अष्टमूर्तिर्नयोपेत्प विरूप: सुरसुन्दर :॥123॥
924.सर्ववश्यकर: - सबको वश में करनेवाले ।।
925.शक्ति: - शक्तिस्वरूप ।
926.अनन्त: - जिनके गुणों का अंत नहीं है ।
927.अनन्तमङ्गल: - जो अनंत मंगलों से पूर्ण हैं ।
928.अष्टमूर्ति: - पंच भूत, सुर्य , चंद्र , और आत्मा -ये आठ जिनकी मूर्ति अर्थात् स्वरूप हैं ।
929.नयोपेत: - नीतिमान्।
930.विरूप: - विविध रूपवाले ।
931.सुरसुन्दर: - देवताओं से भी अधिक सुंदर ।
धूमकेतुर्महाकेतु: सत्यकेतुर्महारथ:।
नन्दिप्रिय: स्वतंत्रश्च मेखली डमरुप्रिय : ॥124॥
932.धूमकेतु: - अग्निस्वरूप ।
933.महाकेतु: - विशाल बुद्धिवाले ।
934.सत्यकेतु: - जिनका सत्य आदर्श है ।
935.महारथ: - महारथी ।
936.नन्दिप्रिय: - नन्दि( शिववाहन ) जिनके प्रिय हैं ।
937.स्वतन्त्र: - जो किसी के अधीन नहीं हैं ।
938.मेखली: - कटिसूत्र धारण करनेवाले ।
939.डमरुप्रिय: - जिनको डमरू प्रिय है उस शिव के स्वरूप ।