सहस्त्रनाम पाठ
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हिरण्मय: पुराणश्च खेचरो भूचरोऽमर:।
हिरण्यगर्भ: सूत्रात्मा राजराजो विशाम्पति:।।44॥
344.हिरण्मय: - स्वर्ण के समान कांतिवाले ।
345.पुराण: - पुराणपुरुष ।
346.खेचर: - आकाश में विचरण करनेवाले।
347.भूचर: - पृथ्वीपर घूमनेवाले ।
348.अमर: - न मरनेवाले ।
349.हिरण्यगर्भ: - विश्वको उत्पन्न करनेवाले ब्रह्मास्वरूप ।
350.सूत्रात्मा: - सर्वव्यापक ।
351.विशाम्पति: राजराज: - मनुष्योंका पालन करनेवाले राजाधिराज ।
वेदान्तवेद्य उद्गीथो वेदवेदाङपारग:।
प्रतिग्रामस्थिति: सद्य:स्फूर्तिदाता गुणाकर:॥45॥
352.वेदान्तवेद्य: - वेदान्त शास्त्रद्वारा जानने योग्य ।
353.उद्गीथ: - ॐकारस्वरूप ।
354.वेदवेदाङ्ग पारग: - चारों वेदों और छहों वेदाङ्गों में पारंगत ।
355.प्रतिग्राम स्थिति: - प्रत्येक गाँव में स्थित रहनेवाले ।
356.सद्यः स्फूर्तिदाता: - तत्काल स्फूर्ति प्रदान करनेवाले ।
357.गुणाकार: - गुणोंकी खान ।
नक्षत्रमाली भूतात्मा सुरभि: कल्पपादप:।
चिंतामणिर्गुणनिधि: प्रजाधरो ह्यनुत्तम:॥46॥
358.नक्षत्रमाली: - सत्ताईस नक्षत्रोंकी मालावाले ।
359.भूतात्मा: - प्राणियों की आत्मा ।
360.सुरभि: - कामधेनुस्वरूप ।
361.कल्पपादप: - भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाले कल्पवृक्षस्वरूप ।
362.चिन्तामणि: - चिंतामणिस्वरूप ।
363.गुणनिधि: - गुणोंकी खानि ।
364.प्रजाधार: - प्रजा के आधारभूत ।
365.अनुत्तम: - जिनसे उत्तम कोई नहीं है अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ।