सहस्त्रनाम पाठ
Page 28 / 52
बृहज्जानुर्बृहत्कार्यो बृहत्पुच्छो बृहत्कर:।
बृहद्गतिर्बृहत्सेव्यो बृहल्लोकफलप्रद:॥53॥
418.बृहज्जानु: - बड़े घुटनोंवाले ।
419.बृहत्कार्य: - महान् कार्य करनेवाले ।
420.बृहत्पुच्छ: - लम्बी पूँछवाले ।
421.बृहत्कर: - लम्बे हाथोंवाले ।
422.बृहद्गति: - तीव्र गतिवाले ।
423.बृहत्सेव्य: - महापुरुषों के द्वारा सेव्य ।
424.बृहल्लोक फलप्रद: - सम्पूर्ण लोकरूप फल देनेवाले ।
बृहच्छक्तिर्बृहद्वाञ्छाफलदो बृहदीश्वर:।
बृहल्लोकनुतो द्रष्टा विद्यादाता जगद्गुरु:॥54॥
425.बृहच्छक्ति: - महान् शक्तिशाली ।
426.बृहद्वाञ्छाफलद: - बड़ी-बड़ी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले ।
427.बृहदीश्वर: - महान् सामर्थ्यवान ।
428.बृहल्लोकनुत: - असंख्य लोगोंके द्वारा नमस्कृत ।
429.द्रष्टा: - शुभाशुभ कर्मों को देखनेवाले ।
430.विद्यादाता: - विद्या प्रदान करनेवाले ।
431.जगद्गुरु: - जगत् को सन्मार्ग में लगानेवाले गुरु ।
देवाचार्य: सत्यवादी ब्रह्मवादी कलाधर:।
सप्तपातालगामी च मलयाचलसंश्रय:॥55॥
432.देवाचार्य: - देवताओं के आचार्य ।
433.सत्यवादी: - सत्य बोलनेवाले ।
434.ब्रह्मवादी: - ब्रह्म (परमात्म ) – विषयक विवेचन करनेवाले ।
435.कलाधर: - कलाओं के ज्ञाता ।
436.सप्तपातालगामी: - सातों पातालोंमें विचरण करनेवाले ।
437.मलयाचल संश्रय: - मलयगिरिपर निवास करनेवाले ।
उत्तराशास्थित: श्रीदो दिव्यौषधिवश: खग:।
शाखामृग: कपीन्द्रोऽथ पुराणश्रुतिचञ्चुर:॥56॥
438.उत्तराशास्थित: - उत्तर दिशा में स्थित ।
439.श्रीद: - शोभा ( ऐश्वर्य ) प्रदान करनेवाले ।
440.दिव्यौषधिवश: - दिव्य औषधियों को वशीभूत करनेवाले ।
441.खग: - नभोमण्डल में विचरण करनेवाले ।
442.शाखामृग: - शाखाओं पर कूदनेवाले ।
443.कपीन्द्र: - वानरों के अधिपति ।
444.पुराण श्रुतिचञ्चुर: - श्रुति और पुराण की विशेष जानकारी रखनेवाले ।