सहस्त्रनाम पाठ
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चतुरब्राह्मणो योगी योगगम्य: परावर:।
अनादिनिधनो व्यासो वैकुण्ठ: पृथ्वीपति:॥57॥
445.चतुर ब्राह्मण: - निपुण ब्राह्मणस्वरूप ।
446.योगी: - योगसिद्ध ।
447.योगगम्य: - योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
448.परावर: - विश्व के आदि और अंतस्वरूप ।
449.अनादिनिधन: - आदि-अंत से रहित ।
450.व्यास: - वेदों का विस्तार करनेवाले ।
451.वैकुण्ठ: - माया के प्रभाव से रहित
452.पृथिवीपति: - भूलोक के रक्षक ।
अपराजितो जिताराति: सदानन्दो दयायुत:।
गोपालो गोपतिर्गोप्ता कलिकालपराशर:॥58॥
453.अपराजित: - शत्रुओं के द्वारा अजेय ।
454.जिताराति: - शत्रुओं को जीतनेवाले ।
455.सदानन्द: - सदा आनंदित रहनेवाले ।
456.दयायुत: - दयालु ।
457.गोपाल: - पृथ्वीका पालन करनेवाले ।
458.गोपति: - इन्द्रियों के स्वामी ।
459.गोप्ता: - भक्तों के रक्षक ।
460.कलिकाल पराशर: - कलिकाल के पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक ।
मनोवेगी सदायोगी संसारभयनाशन:।
तत्वदाताथ तत्वज्ञस्तत्वं तत्वप्रकाशक:॥59॥
461.मनोवेगी: - मन के समान वेगवाले ।
462.सदायोगी: - सदा योगयुक्त रहनेवाले ।
463.संसार भय नाशन: - भवभय का नाश करनेवाले ।
464.तत्त्वदाता: - तत्वज्ञान के दाता ।
465.तत्त्वज्ञ: - तत्वज्ञानी ।
466.तत्त्वम्: - ब्रह्मस्वरूप ।
467.तत्त्व प्रकाश: - तत्व का प्रकाश करनेवाले ।
शुद्धो बुद्धो नित्यमुक्तोभक्तराजो जयद्रथ:।
प्रलयोऽमितमायश्च मायातीतो विमत्सर:॥60॥
468.शुद्ध: - सबको पवित्र करनेवाले ।
469.बुद्ध: - ज्ञानवान् ।
470.नित्यमुक्त: - सदा मुक्तस्वरूप ।
471.भक्तराज: - भगवद्भक्तों में देदीप्यमान ।
472.जयद्रथ: - आक्रमण में जय प्राप्त करनेवाले ।
473.प्रलय: - शत्रुओं के लिये प्रलयंकर ।
474.अमितमाय: - अनंत माया जाननेवाले ।
475.मायातीत: - सर्वथा मायाजाल से रहित ।
476.विमत्सर: - ईर्ष्या से रहित्।