सहस्त्रनाम पाठ
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मायाभर्जितरक्षाश्च मायानिर्मितविष्टप:।
मायाश्रयश्च निर्लेपो मायानिर्वर्तक: सुखम्॥61॥
477.माया भर्जितरक्ष: - अपनी माया से राक्षसों को भून डालनेवाले ।
478.मायानिर्मित विष्टप: - माया से भुवनों की सृष्टि करनेवाले ।
479.मायाश्रय: - माया का आश्रय लेनेवाले ।
480.निर्लेप: - निरासक्त रहनेवाले ।
481.मायानिर्वर्तक: - माया शक्ति द्वारा कार्य सम्पन्न करनेवाले ।
482.सुखम्: - सुखस्वरूप।
सुखी सुखप्रदो नागो महेशकृतसंस्तव:।
महेश्वर: सत्यसंध: शरभ: कलिपावन:॥62॥
483.सुखी: - सदा सुख से रहनेवाले ।
484.सुखप्रद: - सुख प्रदान करनेवाले ।
485.नाग: - नागस्वरूप ।
486.महेशकृतसंस्तव: - शंकरजी के द्वारा स्तुत ।
487.महेश्वर: - महान् ऐश्वर्यशाली ।
488.सत्यसन्ध: - सत्यवादी ।
489.शरभ: - शरभ नामक पशु के समान महान् बलशाली ।
490.कलिपावन: - कलियुग को पवित्र करनेवाले ।
सहस्त्रकंधरबलविध्वंसनविचक्षण:।
सह्स्त्रबाहु: सहजो द्विबाहुर्द्विभुजोऽमर:॥63॥
491.सहस्रकन्धर बलविध्वंसन विचक्षण: - हजारों सिरवाले रावण के बल को विध्वंस करने में चतुर ।
492.सहस्रबाहु: - हजारों भुजाबाले ।
493.सहज: - सहज स्थितिस्वरूप।
494.द्विबाहु: - दो बाहुवाले ।
495.द्विभुज: - दो भुजाओंवाले ।
496. अमर: - अविनाशी।