सहस्त्रनाम पाठ
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किंकरान्तको जम्बुमालिहंतोग्ररूपधृक्।
आकाशचारी हरिगो मेघनादरणोत्सुक:॥68॥
521.किङ्करान्तकर: - रावण के सेवकों को मार डालनेवाले ।
522.जम्बुमालिहक्ता: - जम्बुमाली राक्षस को मारनेवाले ।
523.उग्ररूपधृक्: - उग्ररूप धारण करनेवाले ।
524.आकाशचारी: - आकाश में विचरण करनेवाले ।
525.हरिग: - प्रभु को प्राप्त करनेवाले ।
526.मेघनादरणोत्सुक: - मेघनाद के साथ युद्ध करने के लिये उत्कण्ठित ।
मेघगम्भीरनिनदो महारावणकुलान्तक:।
कालनेमिप्राणहारी मकरीशापमोक्षद:॥69॥
527.मेघगम्भीरनिनदो: - बादल के समान गम्भीर शब्द करनेवाले ।
528.महारावणकुलान्तक: - महारावण के कुल को नष्ट करनेवाले ।
529.कालनेमिप्राणहारी: - कालनेमि राक्षस का प्राण हरनेवाले ।
530.मकरीशापमोक्षद: - मकरी को शाप से मुक्त करनवाले ।
रसो रसज्ञ: सम्मानो रूपं चक्षु: श्रुतिर्वच:।
घ्राणो गंध: स्पर्शनं च स्पर्शोऽहंकारमानग:॥70॥
531.रस: - रसस्वरूप ।
532.रसज्ञ: - रस को जाननेवाले।
533.सम्मान: - प्रभुका सम्यक् सम्मान करनेवाले ।
534.रूपम् – रूप स्वरूप ।
535.चक्षु: - चक्षुस्वरूप ।
536.श्रुति: - श्रवणस्वरूप ।
537.वच: - वाणीस्वरूप ।
538.घ्राण: - नासिकास्वरूप ।
539.गन्ध: - गंधरूप ।
540.स्पर्शनम्: - स्पर्शरूप ।
541.स्पर्श: - सम्पर्क- ज्ञानस्वरूप ।
542.अहङ्कारमानग: - अहंकार के स्वरूप को प्राप्त होनेवाले ।