सहस्त्रनाम पाठ
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नेतिनेतीतिगम्यश्च वैकुण्ठभजनप्रिय:।
गिरीशो गिरिजाकान्तो दुर्वासा: कविरङ्गिरा:॥71॥

543.नेतिनेतीतिगम्य: - नेति-नेति शब्दों द्वारा गम्य ।
544.वैकुण्ठ भजन प्रिय: - भगवान् के भजन में प्रीति रखनेवाले ।
545.गिरीश: - पर्वतों के ईश ।
546.गिरिजाकान्त: - माता पार्वती के प्रिय शंकरस्वरूप ।
547.दुर्वासा: - दुर्वासा मुनिस्वरूप ।
548.कवि: - कविस्वरूप ।
549.अङ्गिरा: - अङ्गिरा मुनिरूप ।
भृगुर्वसिष्ठश्च्यवनो नारदस्तुम्बरोऽमल:।
विश्वक्षेत्रो विश्वबीजो विश्वनेत्रश्च विश्वप:॥72॥

550.भृगु: - भृगु मुनिस्वरूप ।
551.वसिष्ठ: - वशिष्ठ्मुनिस्वरूप ।
552.च्यवन: -च्यवन ऋषिस्वरूप ।
553.नारद: - नारदमुनिस्वरूप ।
554.तुम्बर: - तुम्बरु गंधर्वस्वरूप ।
555.अमल: - दोषरहित ।
556.विश्वक्षेत्र: - विश्वक्षेत्रस्वरूप।
557.विश्वबीज: - विश्वबीज अर्थात् कारणस्वरूप ।
558.विश्वनेत्र: - सर्वद्रष्टा ।
559.विश्वप: - विश्वके पालक ।
याजको यजमानश्च पावक: पितरस्तथा।
श्रद्धा बुद्धि: क्षमा तंद्रा मंत्रो मंत्रयिता सुर:॥73॥


560.याजक: - यज्ञकर्मा ।
561.यजमान: - प्रधान होतारूप ।
562.पावक: - अग्निरूप ।
563.पितर: - जगत् के माता पिता ।
564.श्रद्धा: - श्रद्धास्वरूप ।
565.बुद्धि: - बुद्धिस्वरूप ।
566.क्षमा: - क्षमास्वरूप ।
567.तन्द्रा: - तंद्रारूप ।
568.मन्त्र: - मंत्रस्वरूप ।
569.मन्त्रयिता : - शुभ मंत्र देनेवाले ।
570.सुर: - देवस्वरूप ।

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