सहस्त्रनाम पाठ
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अञ्जनाप्राणलिङ्गश्च वायुवंशोद्भव: शुभ: ।
भद्ररूपो रुद्ररूप: सुरूपश्चित्ररूपधृक् ॥109॥
828.अञ्जनाप्राणलिङ्ग: - माता अंजना के प्राणप्यारे पुत्र ।
829.वायुवंशोद्भव: - वायुदेवता के वंशमें उत्पन्न ।
830.शुभ: - कल्याणप्रद ।
831.भद्ररूप: - मङ्गलमय स्वरूपवाले ।
832.रुद्ररूप: - शंकरस्वरूप ।
833.सुरूप: - सुन्दर स्वरूपवाले ।
834.चित्ररूपधृक्: -चित्र- विचित्र रूप धारण करनेवाले ।
मैनाकवन्दित: सूक्ष्मदर्शनी विजयो जय:।
क्रांतदिङ्मण्डलो रुद्र: प्रकटीकृतविक्रम:॥110॥
835.मैनाकवन्दित: - मैंनाकपर्वतद्वारा वंदित ।
836.सूक्ष्मदर्शन: - सूक्ष्मदृष्टि वाले ।
837.विजय: - अर्जुनस्वरूप ।
838.जय: - विष्णु के दवारपालस्वरूप ।
839.क्रान्तदिङ्मण्डल: - दिशाओं के पार जानेवाले ।
840.रुद्र: - आर्द्रानक्षत्ररूप ।
841.प्रकटीकृतविक्रम: - अपने पराक्रम को प्रकट करनेवाले ।
कम्बुकण्ठ: प्रसन्नात्मा वृकोदर:।
लम्बौष्ठ: कुण्डली चित्रमाली योगविदां वर:।111॥
842.कम्बुकण्ठ: - शंख के समान सुंदर गर्दनवाले ।
843.प्रसन्नात्मा: - सदा प्रसन्न चित्त रहनेवाले ।
844.ह्रस्वनास: - छोटी नासिकावाले ।
845.वृकोदर: - भेड़ियों के समान बड़े उदरवाले ।
846.लम्बौष्ठ: - बड़े-बड़े ओठवाले ।
847.कुण्डली: - कानों मे कुण्डल धारण करनेवाले ।
848.चित्रमाली: - चित्र- विचित्र पुष्पों की माला पहननेवाले ।
849.योगविदां वर: - योगवेत्तओं में श्रेष्ठ ।

विपश्चित्कविरानन्दविग्रहोऽनल्पशासन:।
फाल्गुनीसूनुरव्यग्रो योगात्मा योगतत्पर:॥112॥
850.विपश्चितकवि – तत्वज्ञ कवि ।
851.आनन्दविग्रह: - मूर्तिमान् आनंद ।
852.अनल्पशासन: -सबके ऊपर शासन करनेवाले ।
853.फाल्गुनी सूनु: - पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे उत्पन्न होनेवाले फाल्गुनीपुत्र ।
854.अव्यग्र: - कभी व्याकुल न होनेवाले ।
855.योगात्मा: - योगस्वरूप ।
856.योगतत्पर: - योग में तत्पर रहनेवाले ।

हनुमान साठिका (HANUMAN SATHIKA)
हनुमान साठिका का प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को सारी जिंदगी किसी भी संकट से सामना नहीं करना पड़ता । उसकी सभी कठिनाईयाँ एवं बाधाएँ श्री हनुमान जी आने के पहले हीं दूर कर देते हैं। हर प्रकार के रोग दूर हो जाती हैं तथा कोई भी शत्रु उस मनुष्य के सामने नहीं टिक पाता । Read More

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