सहस्त्रनाम पाठ
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योगविद् योगकर्ता च योगयोनिर्दिगम्बर: ।
अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मितविग्रह: ॥113॥
857.योगवित्: - योग के ज्ञाता ।
858.योगकर्ता: - योग को बनानेवाले ।
859.योग योनि: - योग की उत्पत्तिके कारण ।
860.दिगम्बर: - दिशारूपी वस्त्रधारी ।
861.अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मित विग्रह: - सर्ववर्णस्वरूप ।
उलूखमुख: सिद्धसंस्तुत: प्रमथेश्वर: ।
श्लिष्टजङ्घ: स्लिष्टजानु: स्लिष्टपाणि: शिखाधर: ॥114॥
862.उलूखलमुख: - ओखली के समान मुखार-विंदवाले ।
863.सिद्धसंस्तुत: - सिद्धपुरुषों के दवारा जिनकी सम्यक् रीति से स्तुति होती है ।
864.प्रमयेश्वर: - भूतगणों के स्वामी ।
865.श्लिष्टजङ्घ: - सटी हुई जंघावाले ।
866.श्लिष्टजानु: - मिले हुए घुटनोंवाले ।
867.श्लिष्टपाणि: - मिले हुए हाथोंवाले ।
868.शिखाधर: - चोटी धारण करनेवाले ।
सुशर्मामितशर्मा च नारायणपरायण:।
जिष्णुर्भविष्णु रोचिष्णुर्ग्रसिष्णु: स्थाणुरेव च ॥115॥
869.सुशर्मा: - सुंदर सुख देनेवाले ।
870.अमितशर्मा: - असीम सुख देनेवाले ।
871.नारायण परायण: - भगवान् नारायण में लीन रहनेवाले ।
872.जिष्णु: -जीतनेवाले ।
873.भविष्णु: - भविष्य में होनेवाले ।
874.रोचिष्णु: - कांतिमान्।
875.ग्रसिष्णु: - सर्वसन्हार करनेवाले शिवस्वरूप ।
876.स्थाणु: - स्थिर रहनेवाले ।
हरिरुद्रानुसेकोऽथ कम्पनो भूमिकम्पन:।
गुणप्रवाह: सूत्रात्मा वीतरागस्तुतिप्रिय:॥116।
877.हरिरुद्रानुसेक: - भगवान् विष्णु और शंकर का अभिषेक करनेवाले ।
878.कम्पन: - शत्रुओं को कम्पित करनेवाले ।
879.भूमिकम्पन: - पृथ्वी को कम्पित करनेवाले ।
880.गुण प्रवाह: - गुणों के प्रवाह अर्थात् सर्वगुणसमपन्न ।
881.सूत्रात्मा: - यज्ञोपवीतधारी ।
882.वीतराग स्तुतिप्रिय: - वीतराग पुरुष के द्वारा की गयी स्तुति जिन्हें प्रिय लगती है ।