सहस्त्रनाम पाठ
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स्मृतिबीजं सुरेशान: संसारभयनाशन:।
उत्तम: श्रीपरीवार: श्रितो रुद्रश्च कामधुक् ॥132॥
993.स्मृतिबीजम् – स्मृतियों के बीज ।
994.सुरेशान: - देवताओं के स्वामी ।
995.संसार भय नाशन: - संसार के भय का नाश करनेवाले ।
996.उत्तम: - श्रेष्ठ ।
997.श्रीपरीवार: - श्री ( माता जानकी ) – के पुत्र ।
998.श्रित: - आश्रयवान्।
999.रुद्र: - रुद्रस्वरूप ।
1000. कामधुक्: - सारी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।
श्रीवाल्मीकिरुवाच
इति नाम्नां सहस्त्रेण स्तुतो रामेण वायुभू: ।
उवाच तं प्रसन्नात्मा संधायात्मानमव्ययम्॥133॥
वाल्मीकिमुनि बोले – इस प्रकार श्रीराम के द्वारा सहस्त्रनामसे स्तुति किये जाने पर प्रसन्नचित्त श्रीहनुमान जी अपने अविनाशी आत्मस्वरूप में स्थित होकर उनसे बोले - ॥133॥
श्रीहनुमानुवाच
ध्यानास्पदमिदं ब्रह्म मत्पुर: समुपस्थितम्।
स्वामिन् कृपानिधे राम ज्ञातोऽसि कपिना मया ॥134॥
श्री हनुमानजी बोले – स्वामिन् ! कृपासिंधु श्रीरामचन्द्र जी ! मैं कपि होते हुए भी आपको जान गया कि मेरे सामने आप परम ध्येय , परात्पर परब्रह्म ही समुपस्थित हैं ॥134॥