201.चैतन्य विग्रह: - चिन्मय शरीर वाले ।
202.ज्ञानद: - ब्रह्मज्ञान के दाता ।
203.प्राणद: -प्राण (बल) प्रदान करनेवाले ।
204.प्राण: - जिससे प्राणी प्राणवाले हैं , अर्थात् प्राणस्वरूप ।
205.जगत्प्राण: - जगत् के प्राण ।
206.समीरण: - वायुरूप ।
207.विभीषणप्रिय: - विभीषण के प्यारे ।
208.शूर: - शत्रुओं को रण में सुलानेवाले ।
209.पिप्पलाश्रय सिद्धिद: - ( आनन्दरामायण के मनोहरकाण्डके अनुसार ) अश्वत्थ को गृह मानकर साधना करनेवाले साधक को सारी सिद्धियों प्रदान करनेवाले ।
210.सिद्ध: -सिद्ध स्वरूप ।
211.सिद्धाश्रय: - सिद्धों के आश्रय ।
212.काल: - यमरूप ।
213.महोक्ष: - महान् धर्मरूपी बैलवाले 214.कालाजान्तक: - काल से उत्पन्न जरा- व्याधि आदि दोषों का अन्त करनेवाले ।
215.लङ्केशनिधनस्थायी: - रावण के विनाश के लिये स्थिरचित्त ।
216.लङ्कादाहक: - लंका को जलानेवाले ।
217.ईश्वर: - त्रिलोकी में परम ऐश्वर्यशाली ।


218.चन्द्रसूर्यग्निनेत्र: - चंद्र,सूर्य और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले शिवस्वरूप ।
219.कालाग्नि:- मृत्युकारी अग्निरूप ।
220.प्रलयान्तक: - प्रलय का अंत करनेवाले अर्थात् भक्तों को जन्म-मृत्यु से रहित करनेवाले।
221.कपिल: - काले- पीले वर्ण के रोम से युक्त ।
222.कपिश: - श्याम-पीतवर्ण मिश्रित कपिशवर्ण ।
223.पुण्य राशि: - पुण्यकी राशि ।
224.द्वादशराशिग: - द्वादश राशियों के ज्ञाता अर्थात् ज्योतिषशास्त्र के जाननेवाले ।
225.सर्वाश्रय: - सबके आश्रय स्थान ।
226.अप्रमेयात्मा: - अनुपम शरीरवाले ।
227.रेवत्यादिनिवारक: - रेवती-पूतना आदि ग्रह- दोषों का निवारण करनेवाले ।
228.लक्ष्मण प्राणदाता: - संजीवनी द्वारा लक्ष्मणा जी को प्राण देनेवाले ।
229.सीताजीवन हेतुक: - श्री जानकी जी को श्रीराम का संदेश देकर जीवन प्रदान करनेवाले ।
230.रामध्येय: - श्री राम जिनका ध्यान-स्मरण करते हैं ।
231.हृषिकेश: - इन्द्रियों के स्वामी ।
232.विष्णुभक्त: - विष्णुके भक्त ।
233.जटी: - जटावाले ।
234.बली – बलशाली ।

235.देवारिदर्पहा: - देवशत्रुओंके दर्प को नष्ट करनेवाले ।
236.होता – भगवद्भक्तिका अनुष्ठान करनेवाले ।
237.धाता: - जगत् को धारण करनेवाले ।
238.कर्ता: - जगत् को बनानेवाले ।
239.जगत्प्रभु: - जगत् के स्वामी ।
240.नगरग्रामपाल: - नगर और ग्रामवासियों की रक्षा करनेवाले ।
241.शुद्ध: - शुद्धस्वरूप ।
242.बुद्ध: - ज्ञान स्वरूप ।
243.निरत्रप: - सलज्ज ।
244.निरञ्जन: -अज्ञान या माया से रहित ।
245.निर्विकल्प: - विकल्परहित ।
246.गुणातीत: - सत्त्वादि गुणों से रहित ।
247.भयङ्कर: - दुष्टों के लिये विकराल स्वरूपवाले ।
248.हनुमान् – श्री राम के अनुचर ।
249.दुराराध्य: - अभक्तों के लिये कष्ट से आराधनीय ।
250.तपःसाध्य: - तप के द्वारा साध्य ।
251.महेश्वर: - महान् ईश्वर ।
252.जानकीधनशोकोत्थतापहर्ता: - जानकीधन अर्थात् श्रीरामके शोकसे उत्पन्न संताप को हरनेवाले ।
253.परात्पर: - जो अव्यक्त से भी परे हैं ।
254.वाङ्मय: - वेदशास्त्र- सरस्वतीस्वरूप ।
255.सदसद्रूप: - सत् और असत् स्वरूप ।
256.कारणम्: - संसार के अभिन्न निमित्तोपादन कारण ।
257.प्रकृतेः पर: - जो त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे हैं ।
258.भाग्यद: - कर्मजन्य शुभाशुभ फलों को देनेवाले ।
259.निर्मल: - मल अर्थात् दोष से रहित ।
260.नेता: - मार्गदर्शक ।
261.पुच्छलङ्काविदाहक: - पुच्छ से लंकाको जलानेवाले ।
262.पुच्छबद्धयातुधान: -पुच्छ से राक्षसों को बाँधनेवाले ।
263.यातुधानरिपुप्रिय: - राक्षसों के शत्रु श्रीराम के प्रिय ।
264.छायापहारी: - छायानाम की राक्षसीको मारनेवाले।
265.भूतेश:- भूतों के स्वामी ।
266.लोकेश: - लोकों के स्वामी ।
267.सद्गतिप्रद: - संतों को सद्गति प्रदान करनेवाले ।
268.प्लवङ्गमेश्वर: - वानरों के स्वामी ।
269.क्रोध: - शत्रुओं के लिए क्रोधस्वरूप ।
270.क्रोध संरक्तलोचन: - युद्धकाल में क्रोध से लाल नेत्रवाले ।
271.सौम्य:- सौम्यस्वरूप ।
272.गुरु: - अज्ञान दूर करके परमात्मदर्शन करानेवाले ।
273.काव्यकर्ता: - कव्य-रचना करनेवाले।
274.भक्तानां वरप्रद: - भक्तों को अभीष्ट वर प्रदान करनेवाले ।
275.भक्तानुकम्पी: - भक्तों पर अनुकम्पा करनेवाले ।
276.विश्वेश: - विश्वके संचालक ।
277.पुरुहूत: - बहुत बार लोग जिनको पुकारते हैं ।
278.पुरन्दर: - शत्रुके नगरों को ध्वस्त करनेवाले ।
279.क्रोधहर्ता: - क्रोध को हरनेवाले ।
280.तमोहर्ता: - अज्ञानान्धकार को दूर करनेवाले ।
281.भक्ताभयवरप्रद: - भक्तों को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
282.अग्नि: - अग्निस्वरूप ।
283.विभावसु: - दिव्य तेज:स्वरूप्।
284.भास्वान्: - प्रकाशयुक्त ।
285.यम: - संयमस्वरूप ।
286.निर्ॠति: - नैर्ऋतगणके स्वामी ।
287.वरुण: - जल के देवता वरुणस्वरूप।
288.वायुगतिमान् : - वायुके समान गतिशील ।
289.वायु: - वायुपुत्र होने के कारण वायुस्वरूप ।
290.कौबेर ईश्वर: - कुबेर-सम्बन्धी धन के मालिक ।
291.रवि: - सुर्यस्वरूप ।
292.चन्द्र: - जगत् को आह्लादित करनेवाले चंद्रस्वरूप ।
293.कुज: - मंगल ग्रहस्वरूप ।
294.सौम्य: - बुधग्रहस्वरूप ।
295.गुरु: - बृहस्पतिग्रहस्वरूप ।
296.काव्य: - शुक्रग्रहस्वरूप ।
297.शनैश्चर: - शनिग्रहस्वरूप ।
298.राहु: - राहुग्रहस्वरूप ।
299.केतु: - केतुग्रहस्वरूप ।
300.मरुत्: - वायुस्वरूप ।

301.होता: - हवन करनेवाले ।
302.दाता: - भक्तों के भव-बंधन को काटनेवाले ।
303.हर्ता: - भक्तोंकी ममताको हरनेवाले ।
304.समीरज: - पवन देवता के पुत्र ।
305.मशकीकृतदेवारि: - देवताओं के शत्रुओं को मच्छरके समान समझनेवाले ।
306.दैत्यारि: - दैत्यों के शत्रु ।
307.मधुसूदन: - भक्तोंके अशुभ कर्मोंका विनाश करनेवाले ।
308.काम: - श्रीराम भक्तिकी कामना करनेवाले ।
309.कपि: - जल से पृथ्वीकी रक्षा करनेवाले ।
310.कामपाल: - वीर्यरक्षक अर्थात् ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले ।
311.कपिल: - कपिलमुनिस्वरूप ।
312.विश्वजीवन: - विश्व के जीवन ।
313.भागीरथीपदाम्भोज: - जिनके चरणकमल भागीरथीके समान पवित्र करनेवाले हैं ।
314.सेतुबन्धविशारद: - सेतु बांधने में चतुर ।
315.स्वाहा: - स्वाहास्वरूप ।
316.स्वधा: - स्वधा स्वरूप
317.हवि: - हवि:स्वरूप ।
318.कव्यम्: - पितरोंको दिये जानेवाले अन्नादिरूप ।
319.हव्यवाहप्रकाशक: - देवताओंके लिये हव्य वहन करनेवाले अग्निके समान प्रकाशक ।
320.स्वप्रकाश: - स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
321.महावीर: - बड़े बलवान ।
322.लघु: - लघु रूप धारण करनेवाले ।
323.ऊर्जित:विक्रम: - सुदृढ़ा पराक्रमवाले ।
324.उड्डीनोड्डीनगतिमान्: - आकाशमें उड़नेवालों में तीव्रगतिशाली ।
325.सद्गति: - सम्यक रीतिसे चलनेवाले।
326.पुरुषोत्तम्: - पुरुषों में श्रेष्ठ ।
327.जगदात्मा: - जगत् – सवरूप ।
328.जगद्योनि: - जगत् के कारण ।
329.जगदन्त: - जगत् का अन्त करनेवाले ।
330.अनन्तक: - जिनके अनन्त गुण हैं ।
331.विपाप्मा: - पापरहित ।
332.निष्कलङ्क: - कलङ्करहित ।
333.महान्: - महत्तत्त्वस्वरूप ।
334.महदहङ्कृति: - महां अहंकारतत्वस्वरूप ।
335.खं: - आकाशतत्वस्वरूप ।
336.वायु: - वायुतत्वस्वरूप ।
337.पृथ्वी: - पृथ्वीतत्वस्वरूप ।
338.आप: - जलतत्वस्वरूप ।
339.वह्नि: - अग्नितत्वस्वरूप ।
340.दिक्पाल: - दिशाओंका पालन करनेवाले ।
341.क्षेत्रज्ञ: - क्षेत्रके ज्ञाता ।
342.क्षेत्रहर्ता: - क्षेत्र का हरण करनेवाले ।
343.पल्वलीकृतसागर: - सागर को लघु जलाशयरूप मानकर सरलतासे पार करनेवाले ।
344.हिरण्मय: - स्वर्ण के समान कांतिवाले ।
345.पुराण: - पुराणपुरुष ।
346.खेचर: - आकाश में विचरण करनेवाले।
347.भूचर: - पृथ्वीपर घूमनेवाले ।
348.अमर: - न मरनेवाले ।
349.हिरण्यगर्भ: - विश्वको उत्पन्न करनेवाले ब्रह्मास्वरूप ।
350.सूत्रात्मा: - सर्वव्यापक ।
351.विशाम्पति: राजराज: - मनुष्योंका पालन करनेवाले राजाधिराज ।
352.वेदान्तवेद्य: - वेदान्त शास्त्रद्वारा जानने योग्य ।
353.उद्गीथ: - ॐकारस्वरूप ।
354.वेदवेदाङ्ग पारग: - चारों वेदों और छहों वेदाङ्गों में पारंगत ।
355.प्रतिग्राम स्थिति: - प्रत्येक गाँव में स्थित रहनेवाले ।
356.सद्यः स्फूर्तिदाता: - तत्काल स्फूर्ति प्रदान करनेवाले ।
357.गुणाकार: - गुणोंकी खान ।
358.नक्षत्रमाली: - सत्ताईस नक्षत्रोंकी मालावाले ।
359.भूतात्मा: - प्राणियों की आत्मा ।
360.सुरभि: - कामधेनुस्वरूप ।
361.कल्पपादप: - भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाले कल्पवृक्षस्वरूप ।
362.चिन्तामणि: - चिंतामणिस्वरूप ।
363.गुणनिधि: - गुणोंकी खानि ।
364.प्रजाधार: - प्रजा के आधारभूत ।
365.अनुत्तम: - जिनसे उत्तम कोई नहीं है अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ।
366.पुण्यश्लोक: - पुण्यकीर्तिवाले ।
367.पुराराति: - पुरनामक राक्षस के शत्रु शिवस्वरूप ।
368.ज्योतिष्मान्: - ज्योति:स्वरूप ।
369.शर्वरीपति: - चन्द्रस्वरूप ।
370.किल्किलाराव सन्त्रस्त भूत प्रेत पिशाच: - किल-किल शब्दसे भूत-प्रेत- पिशाचादिको संत्रस्त करनेवाले ।
371.ऋणत्रयहर: - भक्तोंके तीनों ऋणों को हरनेवाले ।
372.सूक्ष्म: - सूक्ष्मस्वरूप ।
373.स्थूल: - स्थूलस्वरूप ।
374.सर्वगति: - सर्वत्र गतिवाले ।
375.पुमान्: - पुरुषार्थी ।
376.अपस्मारहर: - अपस्मार (मिरगीरोग ) को हरने वाले ।
377.स्मर्ता: - भगवान् का स्मरण करनेवाले ।
378.श्रुति: - वेदस्वरूप ।
379.गाथा: - स्तोत्रस्वरूप ।
380.स्मृति: - स्मृतिस्वरूप ।
381.मनु: - मंत्रस्वरूप ।
382.स्वर्गद्वारम्: - स्वर्ग के द्वारस्वरूप ।
383.प्रजाद्वार: - प्रजा अर्थात् संतति प्रदान करनेवाले ।
384.मोक्षद्वार: - मोक्ष प्रदान करनेवाले ।
385.यतीश्वर: - सन्यम करनेवालों में अतिश्रेष्ठ ।
386.नादरूप: - नाद-ब्रह्मस्वरूप ।
387.परम: - मोक्षस्वरूप।
388.परब्रह्म: - परब्रह्मस्वरूप
389.ब्रह्म: - सर्वव्यापक ।
390.ब्रह्मपुरातन: - आदिकारणरूप पुरातन ब्रह्म ।
391.एक: - अद्वितीय ।
392.अनेक: - अनेकरूप ।
393.जन: - भक्तस्वरूप ।
394.शुक्ल: - शुक्लस्वरूप ।
395.स्वयं ज्योति: - स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
396.अनाकुल: - व्याकुल न होनेवाले ।
397.ज्योति: - प्रकाशस्वरूप ।
398.अनादिर्ज्योति: - सब प्रकारकी ज्योतिके मूलभूत अनादि ज्योति ।
399.सात्त्विक: - सात्त्विक रूपमें पालनकर्ता ।
400.राजस: - राजसरूप में उत्पन्न करनेवाले ।

हनुमान साठिका (HANUMAN SATHIKA)
हनुमान साठिका का प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को सारी जिंदगी किसी भी संकट से सामना नहीं करना पड़ता । उसकी सभी कठिनाईयाँ एवं बाधाएँ श्री हनुमान जी आने के पहले हीं दूर कर देते हैं। हर प्रकार के रोग दूर हो जाती हैं तथा कोई भी शत्रु उस मनुष्य के सामने नहीं टिक पाता । Read More

हनुमान बाहुक (HANUMAN BAHUK)
एक बार गोस्वामी तुलसीदासजी बहुत बीमार हो गये । भुजाओं में वात-व्याधि की गहरी पीड़ा और फोड़े-फुंसियों के कारण सारा उनका शरीर वेदना का स्थान-सा बन गया था। उन्होंने औषधि, यन्त्र, मन्त्र, त्रोटक आदि अनेक उपाय किये, किन्तु यह रोग घटने के बदले दिनों दिन बढ़ता ही जाता था। Read More
बजरंग बाण पाठ महात्मय
श्री बजरंग बाण- बजरंग बाण तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में रचित हनुमान जी का पाठ है । बजरंग बाण यानि की भगवान महावीर हनुमान रूपी बाण जिसके प्रयोग से हमारी सभी तरह की विपदाओं, दु:ख, रोग, शत्रु का नाश हो जाता है।Read More
श्री हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्रम (HANUMAN SAHASRANAMAM STOTRAM)
जो भी मनुष्य सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है उसके समस्त दु:ख नष्ट हो जाते हैं तथा उसकी ऋद्धि –सिद्धि चिरकाल तक स्थिर रहती है। प्रतिदिन डेढ़ मास तक इस हनुमत्सहस्त्रनाम स्तोत्र का तीनों समय पाठ करने से सभी उच्च पदवी के लोग साधक के अधीन हो जाते हैं । Read More